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विवेचन-विभिन्न रूपों में होने वाले द्रव्य के परिणमन-परिवर्तन को परिणाम कहते हैं और यह परिणाम ही पारिणामिक भाव है। ___ यह पारिणामिकभाव दो प्रकार का है सादि और अनादि। धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्य अनादि पारिणामिक है, और वह परिणमन उनका स्वभाव से ही उस रूप में अनादिकाल से होता चला आ रहा है तथा अनन्तकाल तक होता रहेगा। रूपी पुद्गलद्रव्यों में जो परिणमन होता है, वह सादि-पारिणामिक है। जैसे पर्वत, बादल, इन्द्र-धनुष आदि। क्योंकि पुद्गलों का जो विशिष्ट रूप में परिणमन होता है वह उत्कृष्ट रूप से भी असंख्यातकाल तक ही स्थायी रहता है। इसलिए समस्त आनुपूर्वीद्रव्य सादिपारिणामिक भाव वाले हैं।
इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों में भी सादिपारिणामिक भाव जानना चाहिए।
Elaboration—The transformation of a substance in different forms is called parinam, and it is this parinam that is called parinamik-bhaava or state arrived at due to transformation. This transformed (or transformative) state is of two kindssadi (with a beginning) and anadi (without a beginning). Dharmastikaya and other formless entities are anadi parinamik (their process of transformation is without a beginning). They are in a state of continued innate transformation and will remain so always. In the material substances having a form, the process of transformation has a beginning; some examples being mountains, clouds, rainbow, etc. The reason is that any specific form arrived at by transformation can remain stable only for a certain period, the maximum period of stability being uncountable time. Therefore all anupurvi (sequential) substances are sadi-parinamik (transformative with a beginning). The same holds true for ananupurvi (non-sequential) and avaktavya (inexpressible) substances. (९) अल्प-बहुत्व द्वार
११४. (१) एएसि णं भंते ! णेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्याणं अणाणुपुब्बीदवाणं अवत्तव्बयदव्वाण य दवट्ठयाए पएसट्टयाए दबटु-पएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
अनुयोगद्वार सूत्र
( १९० ).
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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