________________
एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा । णाणादव्बाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा ।
१०८ ( प्रश्न २) नैगम और व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग में हैं ? असंख्यातवें भाग में हैं ? संख्यात भागों में हैं या असंख्यात भागों में हैं अथवा समूचे लोक में हैं ?
(उत्तर) एक अनानुपूर्वीद्रव्य (परमाणु) की अपेक्षा वह लोक के संख्यातवें भाग में नहीं है, असंख्यातवें भाग में है। संख्यात भागों में नहीं, असंख्यात भागों में नहीं और समूचे लोक में नहीं है । अनेक अनानुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा नियमतः सर्वलोक में अवगाढ़ है।
108. (Question 2) Do the naigam-vyavahar naya sammat ananupurvi dravya (non-sequential substances conforming to coordinated and particularized viewpoints) exist in numerable fraction of the universe (occupied space), in its innumerable (infinitesimal) fraction, in its numerable sections, in its innumerable sections, or in the whole universe ?
(Answer) With respect to a single ananupurvi (nonsequential) substance (a paramanu), it does not exist in a numerable fraction of the universe but exists in its innumerable (infinitesimal) fraction. It also does not exist in its numerable sections, innumerable sections or the whole universe. But with respect to many ananupurvi substances, as a rule, they occupy the whole universe.
(३) एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि ।
१०८. (३) इसी प्रकार अवक्तव्यद्रव्य के विषय में भी जानना चाहिए।
108. (3) The same is true for avaktavya (inexpressible) substances.
अनुयोगद्वार सूत्र
Jain Education International
( १७४ )
For Private & Personal Use Only
Illustrated Anuyogadvar Sutra
www.jainelibrary.org