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particularized viewpoints) both ananupurvi dravya (nonsequential substances) and avaktavya dravya (inexpressible substances) are infinite (numerically).
विवेचन - सूत्र में अनुगम के दूसरे भेद का हार्द स्पष्ट किया है कि आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य अनन्त हैं और इनके अनन्त होने का कारण यह है कि ये प्रत्येक आकाश के एक-एक प्रदेश में अनन्त - अनन्त ही पाये जाते हैं ।
आनुपूर्वी आदि द्रव्य अनन्त होते हैं, ये अनन्त द्रव्य असंख्य प्रदेशात्मक लोकाकाश में कैसे समा सकते हैं? यह प्रश्न खड़ा होता है, जिसके समाधान में कहा गया है- पुद्गल की परिणति अत्यन्त सूक्ष्म है, तथा आकाश में अवगाहन की क्षमता असीम है। जैसे एक दीपक
प्रभा से व्याप्त एक घर के आकाश प्रदेशों में दूसरे अनेक दीपकों की प्रभा का समावेश हो जाता है, उसी प्रकार आनुपूर्वी आदि अनन्त द्रव्यों का असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में समावेश सम्भव है। (मल. हेम. वृ. पृ. १४९)
Elaboration-This aphorism explains the theme of the second category of anugam by informing that anupurvi (sequential), ananupurvi (non-sequential) and avaktavya (inexpressible) substances are infinite. The reason for their being infinite numerically is that in every space-point they are found in infinite number.
A question arises here-Anupurvi, etc. substances are infinite, how then can they exist in the lokakasha (occupied space), which is made up only of innumerable space-points? Answering this it is stated that material particles are infinitely minute and the capacity of space to provide occupancy is unlimited. For example in a house filled with the light from one lamp, every space-point has the capacity to provide occupancy to the light from numerous other lamps. In the same way it is possible for the infinite anupurvi, etc. substances to exist in the lokakasha (occupied space) having innumerable space-points. (Vritti by Maladhari Hemachandra p. 149 )
(३) क्षेत्र द्वार
१०८. ( १ ) णेगम - ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स कतिभागे होज्जा ? किं संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जे भागे होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ?
अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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