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________________ धान्य-रस-धातु आदि नापने के तोल-माप-बाँट-गज आदि उस युग में अनेक प्रकार के साधन विकसित हो चुके थे। 'सूत्र ३२० से ३४४ तक से मान-उन्मान-क्षेत्र प्रमाण आदि का वर्णन उस युग की प्रचलित और विकसित व्यापार विधियों का अच्छा दिग्दर्शन कराती है। इस प्रकार अनुयोगद्वार सूत्र में जहाँ दार्शनिक व सैद्धान्तिक चर्चा है-वहाँ सांस्कृतिक विषयों की भी विपुल सामग्री है जो उस समय की लोक कला, व्यापार कला व साहित्य रचना के विकास की सूचना देती है। संकलनकर्ता का नाम और समय जैन आगमों में अनुयोगद्वार सूत्र और नन्दी सूत्र सबसे अर्वाचीन शास्त्र हैं। अनुयोगद्वार सूत्र किसकी रचना है यह प्रश्न आज तक पूर्ण रूप में समाधान नहीं पा सका है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि आर्य वज्रस्वामी तक तो शास्त्रों का अध्ययन अपृथक्त्वानुयोग पद्धति से ही होता था। किन्तु उनके पट्टधर आर्य रक्षित सूरि जो भगवान महावीर के बीसवें पट्टधर थे। (वी. नि. ५२२ से ५९७) ने आगम अभ्यासियों की मति-दुर्बलता, धारणा शक्ति की दुर्बलता को समझकर आगमों का चार अनुयोगों में वर्गीकरण किया। इसलिए उन्हें अनुयोग पृथक्कर्ता माना जाता है। परन्तु अनुयोग द्वार सूत्र के रचनाकार भी वे थे या नहीं, इस विषय में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है किन्तु साथ ही इसका बाधक प्रमाण भी कुछ नहीं है। इस कारण विद्वानों व इतिहास गवेषकों ने अनुयोग पृथक् आर्य रक्षित को ही अनुयोगद्वार सूत्र के रचनाकार या संकलनकर्ता स्वीकार किया है। आर्यरक्षित का समय वीर निर्वाण की छठी शताब्दी है। इस रचना का समय वीर निर्वाण संवत् ५७०-५८४ के मध्य अनुमान किया गया है। अर्थात् विक्रम संवत् ११४ से १२७ के मध्य ईसा की प्रथमशती का अन्तिम चरण ही इसका रचना समय माना जाता है। इस विषय में आगमों के अनुसंधानकर्ता मुनि पुण्यविजय जी, मुनि जम्बूविजय जी तथा आचार्य महाप्रज्ञ जी तीनों एकमत है। व्याख्या ग्रन्थ अनुयोगद्वार सूत्र पर तीन प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इस पर कोई नियुक्ति नहीं है। चूर्णि-चूर्णि की भाषा-प्राकृत है, इसके कर्ता जिनदासगणि महत्तर विक्रम की ७वीं सदी में हुए। हरिभद्रीया वृत्ति हरिभद्रसूरि आगमों के प्रसिद्ध और गम्भीर टीकाकार हैं। उन्होंने आवश्यक और दशवैकालिक सूत्र पर विस्तृत टीकाएँ लिखी है। नन्दी और अनुयोगद्वार पर उनकी संक्षिप्त टीका है। इनका समय विक्रम की आठवीं शताब्दी माना जाता है। मलधारीया वृत्ति हरिभद्र सूरि के बाद आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने इस पर बहुत विस्तृत वृत्ति (व्याख्या) लिखी है। इनका समय विक्रम की बारहवीं शताब्दी माना गया है। ( १२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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