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________________ हमारे सम्पादन का आधार ____ अनुयोगद्वार सूत्र का विषय गम्भीर है, बिना विवेचन के इसका अर्थ समझना बहुत ही कठिन है। संक्षिप्त विवेचन करने पर भी ग्रन्थ विस्तार से इसे दो भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रथम भाग में सूत्र २६२ तक नवनाम प्रकरण में नवरसों के वर्णन तक का पाठ है। इसके आगे का पाठ व विवेचन भाग दो में है। अनेक टीकाओं के अवलोकन पश्चात् हमने अनुवाद व विवेचन की भाषा शैली सरल, सुबोध तथा मध्यम विवेचन वाली रखी है, क्योंकि अधिक लम्बा विवेचन करने से तो इसका विस्तार और अधिक हो जाता। अस्तु, अन्य आगमों से अनुयोगद्वार सूत्र की शैली तथा प्रतिपाद्य कुछ भिन्न है। इसमें पारिभाषिक शब्दों की बहुलता होने से अर्थ-बोध इतना सरल नहीं है। इसलिए हमने अनुवाद तथा विवेचन में ही विशेष पारिभाषिक शब्दों को भिन्न टाइप में देकर वहीं पर अर्थ व व्याख्या करने का ध्यान रखा है। अंग्रेजी अनुवाद में भी पारिभाषिक शब्दों के अर्थ वहीं पर कोष्ठक में दिये गये हैं जिससे कि पाठक को बार-बार पृष्ट पलटने नहीं पड़ें। इसके अनुवाद विवेचन में हमने निम्नलिखित पुस्तकों को अपना आधार माना है। जैनागम रत्नाकर श्रमणसंघ के प्रथम आचार्य सम्राट आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज ने सर्वप्रथम प्राचीन टीका आदि के आधार पर हिन्दी में अनुयोगद्वार की हिन्दी टीका लिखी थी, जो बहुत ही सरल और सुबोध शैली में है। दो भागों में उसका प्रकाशन हुआ। प्रथम भाग का प्रकाशन सन् १९३१ में श्वे. स्था. जैन कॉन्फ्रेंस, मुम्बई से तथा उत्तरार्ध का प्रकाशन पटियाला से हुआ। परन्तु वर्तमान में उसकी उपलब्धता बहुत ही दुर्लभ हो रही है। ___ आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म. के विद्वान शिष्य रत्न आगमों के गम्भीर अध्येता श्री ज्ञान मुनि जी म. ने आचार्य श्री की सम्पादित टीका को अति विस्तृत रूप देकर पुनः सम्पादित किया है, जो एक प्रकार से सर्वथा नया व्याख्या ग्रन्थ ही बन गया है। यह आत्म ज्ञान पीयूष वर्षिणी टीका नाम से प्रकाशित है। इसका सम्पादन मुनि श्री नेमीचन्द्र जी म. ने किया है। दो भागों में यह ग्रन्थ आज उपलब्ध है और व्याख्याकार के गम्भीर व्यापक ज्ञान का साक्षिभूत है। हमने विवेचन में इस ग्रन्थ को आधारभूत माना है। ___आगम समिति ब्यावर से प्रकाशित युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी के निदेशन में श्री केवल मुनि जी द्वारा अनूदित तथा पं. शोभाचन्द जी भारिल्ल द्वारा संशोधित अनुयोगद्वार सूत्र भी हमारे लिए मूल पाठ व विवेचन में उपयोगी बना है। ___ ताइकेन हानाकी के अनुयोगदारइं नामक अंग्रेजी अनुवाद का उपयोग विशेष कर अंग्रेजी शब्दावली स्थिर करने के समय किया गया है। अणुओगदाराइं-नाम से आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा सम्पादित जैन विश्वभारती लाडनूं द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ भी हमारे विवेचन में काफी उपयोगी तथा सहायक बना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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