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________________ नवरस __ इस सूत्र (२६१-६२) में काव्य शास्त्र के नवरसों का वर्णन अपनी मौलिक स्थापना लिए हैं। काव्य नाटक ग्रन्थों में नवरस है-शृंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स अद्भुत और शान्त रस। जबकि इस सत्र में सबसे पहले वीर रस का क्रम रखा है तथा वीडनकरस (लज्जा रस) के रूप में एक नया ही रस बताया है। अन्य किसी काव्य शास्त्रीय वर्णन में 'वीडनक रस' नहीं है। चूर्णिकार तथा टीकाकार हरिभद्र ने इस विषय में कोई स्पष्टीकरण नहीं किया है, परन्तु आचार्यमलधारी हेमचन्द्र का स्पष्टीकरण है, कि भयोत्पादक सामग्री देखने से भयानक रस की उत्पत्ति होती है। यहाँ पर 'भयानक' रस को 'रौद्र रस' में ही विवक्षित कर दिया है और 'वीडनक रस' को अलग प्रस्तुत किया है। सामुद्रिक शास्त्र प्रमाण-मान-उन्मान आदि के भेदों में सामुद्रिक लक्षणों वाले उत्तम-मध्यम-अधम पुरुष के लक्षण बताये हैं-(सूत्र ३३४) जैसे जिसके शरीर की ऊँचाई-१०८ आंगुल प्रमाण मात्र है। उस पर शंख , वृषभ आदि के लक्षण-चिन्ह है। मष, तिल आदि व्यंजन हैं, जिसमें क्षमा आदि गुण वह उत्तम पुरुष है। १०४ आंगुल की ऊँचाई वाला मध्यम पुरुष और ९६ आंगुल की ऊंचाई वाला अधम पुरुष। उस समय के सामुद्रिक शास्त्र की धारणा का पता इस वर्णन से चलता है। इसी प्रकार सूत्र ६५३-५४ में आकाश दर्शन, नक्षत्र आदि के आधार पर सुवृष्टि-कुवृष्टिसुकाल-दुर्भिक्ष आदि का अनुमान होना बताया है। मान्यताएँ तथा व्यवसाय सूत्र २१ में उस युग में प्रचलित वेष भूषा तथा क्रियाकलाप के आधार पर विविध प्रकार की धार्मिक मान्यताओं का उल्लेख है, जैसे-चरक-चीरिक-चर्मखंडिक गौतम-गौव्रतिक आदि। व्यवसाय या कर्म के अनुसार जिन जातियों का नामकरण होता था, उनका उल्लेख यह सूचित करता है कि प्राचीन भारत में 'जाति' जन्मना नहीं, कर्मणा मानी जाती थी। व्यावसायिक जातियों के नाम-दौसिक-कपड़ा बनाने वाले, सौत्रिक-सूत बुनने वाला, तांत्रिक-तंत्री वादक-मुंजकार-मूंज की रस्सी बनाने वाले, वर्धकार-चमड़े की विविध वस्तुएँ बनाने वाला पुस्तकार-कागज बनाने वाला या पुस्तकें लिखने वाला, दंतकार-हाथी दाँत आदि का काम करने वाले आदि। (सूत्र ३०४) विविध कला निपुण कलाकारों के नामों से पता चलता है, आज की तरह प्राचीन समय में भी शरीर के अवयवों को मोड़ने, घुमाने व विविध प्रकार से जनता का मनोरंजन करने वाले अनेक कलाकार (जिमनास्टिक) उस समय होते थे-जैसे- नर्तक-नृत्य करने वाला। जल्ल-रस्सी पर नाचने वाला, मल्ल-कुश्ती लड़ने वाला, प्लवक-गड्डे व नदी तालाब में गहरी छलांग लगाने वाला, लंखमोटे बाँस पर चढ़कर विविध करतब दिखाने वाला आदि। (सूत्र-३०४) ( ११ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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