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The ecstatic pleasure exhibited by the listeners after hearing the spiritual discourse is really thought provoking. It is as under
“O the Reverend ! Your spiritual discourse is detailed, full of deep knowledge, without any attachment and unique. While commenting on Dharma, you have instructed that anger must be pacified. In this context you mentioned about discrimination. With reference to discrimination, you advised that one should keep himself away from eighteen types of sins namely violence and others. Further you described in detail that sins should not be committed. No other Shraman or Brahmin can deliver such a thought-provoking spiritual discourse. So there cannot be any spiritual discourse better than this
सूर्याभदेव की जिज्ञासा और समाधान
७०. तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ट जाव हयहियए उट्ठाए उट्ठेति उट्ठित्ता समणं भगवंतं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
'अहं णं भंते ! सूरियाभे देवे किं १. भवसिद्धिए अभवसिद्धिए, २. सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी, ३. परित्तसंसारिए अनंतसंसारिए, ४. सुलभबोहिए दुल्लभबोहिए, ५. आराहए विराहए, ६. चरिमे अचरिमे ?'
७०. सूर्याभदेव ने श्रमण भगवान महावीर से धर्म-श्रवण कर हृदय में धारण किया और हर्षित सतुष्ट एवं आह्लादित हुआ । अपने आसन से खडे होकर उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन - नमस्कार किया और इस प्रकार प्रश्न पूछा
“भगवन् ! मैं सूर्याभदेव (१) भवसिद्धिक- (भव्य ) हॅू अथवा अभवसिद्धिक- (अभव्य ) हूँ ? (२) सम्यग्दृष्टि हूँ या मिथ्यादृष्टि हॅू ? (३) परित्त संसारी - (परिमित काल तक संसार में भ्रमण करने वाला) हॅू अथवा अनन्त ससारी - ( अनन्त काल तक संसार मे भ्रमण करने वाला) हूँ? (४) सुलभबोधि- (सरलता से सम्यग्ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति करने वाला) हॅू अथवा दुर्लभबोधि हूँ ? (५) आराधक - ( ज्ञान - दर्शन - चारित्रबोधि की आराधना करने वाला) हूँ अथवा विराधक हूँ ? (६) चरमशरीरी हॅू अथवा अचरमशरीरी हॅू ?"
QUESTION OF SURYABH DEV AND ITS ANSWER
70. After listening to the spiritual discourse of Bhagavan Mahavir, Suryabh Dev drooled on it, felt pleased, satisfied, overjoyed and accepted it. He then got up from his seat, bowed to Bhagavan Mahavir in respect and asked
रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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