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विवेचन - महतिमहालिताए - यह परिषद् का विशेषण है जिसका अर्थ यह है कि भगवान की देशना सुनने के लिए सूर्याभदेव, सेय राजा, धारिणी आदि रानियो के सिवाय ऋषि परिषदा (अनेक ऋषिगण), मुनि परिषदा, यति परिषदा, देव परिषदा के साथ हजारो नर-नारी, उनके समूह और उन समूहो मे भी बहुत से अपने-अपने सभी पारिवारिक जनो सहित उपस्थित थे।
भगवान के समवसरण मे उपस्थित विशाल परिषदा और धर्मदेशना आदि का औपपातिकसूत्र मे विस्तार से वर्णन किया गया है। यह वर्णन बहुत सुन्दर है।
भावपूर्ण तथा सारयुक्त है। जैसे
"भगवान की दिव्य देशना मे लोक का, जीव-अजीव का स्वरूप बताया गया । फिर धर्म का स्वरूप बताकर धर्म के दो प्रकार - आगारधर्म ( श्रावकधर्म) तथा अनगारधर्म (मुनिधर्म) का स्वरूप बताया। यह धर्मदेशना सुनकर अनेक भव्य आत्माओ ने सयम - दीक्षा ग्रहण की तथा अनेक गृहस्थो ने श्रावधर्म अगीकार किया।
भगवान की देशना सुनकर परिषदा द्वारा प्रकट किया गया प्रमोद भाव बहुत ही भावपूर्ण है । जैसे
"हे भते ! आप द्वारा सुआख्यात, सुप्रज्ञप्त, निर्ग्रन्थ प्रवचन अनुत्तर है। धर्म की व्याख्या करते हुए आपने उपशम-क्रोधादि की शान्ति का उपदेश दिया है, उपशम के उपदेश के प्रसग मे आपने विवेक का व्याख्यान किया है। विवेक की व्याख्या करते हुए आपने प्राणातिपात आदि से विरत होने का निरूपण किया है। पाप-विरमण का उपदेश देने के प्रसग में आपने पापकर्म नही करने का विवेचन किया है। आपसे भिन्न दूसरा कोई श्रमण या ब्राह्मण इस प्रकार का उपदेश नही कर सकता है, तो फिर इससे धर्म के उपदेश की बात कहाँ ?"
Elaboration-Mahtimahalitaye-It is an adjective for the spiritual gathering. It means that in order to listen to the Lord, Suryabh Dev, king Seya, queen Dharni, other queens, group of saints, rishis, yatis, gods, thousands of men and women including members of their family were present.
A detailed description is available in Aupapatık Sutra about the huge gathering in the congregation and spiritual discourse of Bhagavan in the Samavasaran.
The gist of spiritual discourse was as under
"In the the spiritual discourse, the real picture of universe, soul and matter was explained Thereafter, the true nature of Spirituality (Dharma) was mentioned. It was told that it is of two types-one for householder and the other for saints. The nature of these two-Anagaar Dharma and Anagaar Dharma was told in detail. After listening to the spiritual discourse, many true devotees accepted monkhood and many accepted vows of the householder."
सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Dev
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