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________________ * * * * NAI POPALOVAC . Het “O Reverend Sir !(1) Am I, Suryabh Dev, fit for salvation or am I not so ? (2) Am I observer of true belief or of false belief ? (3) Am I going to have specified number of births before attaining liberation ram I going to have unlimited births? (4) Am I going to have true o knowledge easily or with extremely great difficulty ? (5) Am I a true follower of the order or not? (6) Is the present life-span my last life in this mundane world or am I going to have rebirth in this world ?" विवेचन-प्रस्तुत प्रश्नो मे भव्य जीवो की चरम लक्ष्य प्राप्त करने की भावना का निदर्शन है। यद्यपि MMO ससारी जीव अनादिकाल से ससार मे परिभ्रमण करते आ रहे है. परन्त चाहते यही है कि हम ऐसी स्थिति प्राप्त करे कि जिसके पश्चात् न तो पुनर्जन्म हो और न पुनःमरण हो। किन्तु यह आकाक्षा उसी की सफल होती है जिस जीव मे मुक्त होने की योग्यता हो और योग्यता उसी मे पाई जाती है जो भव्य हो अर्थात् कालान्तर मे कभी न कभी जिसे मुक्ति अवश्य प्राप्त होगी। विपुल ऋद्धि और वैभव प्राप्त करके भी सूर्याभदेव के अन्तर हृदय में इनसे संतुष्टि नहीं है। वह इन भोगो से विरक्त होकर मुक्ति पाने के लिए उत्सुक था। इसलिए उसने भगवान से अपनी आत्मा के कल्याण से सम्बन्धित छह प्रश्न पूछे है। सूर्याभदेव ने सर्वप्रथम भगवान के समक्ष यही जिज्ञासा व्यक्त की कि “हे a भगवन् । मै मुक्ति प्राप्त करने की योग्यता वाला-भव्य हूँ अथवा नही हूँ ?' उसकी यह जिज्ञासा ही उसके भव्य होने की सूचक है, क्योकि अभव्य जीव के मन मे तो संसार से * मुक्ति पाने की आकाक्षा ही उत्पन्न नहीं होती है। ___ योग्यता होने पर भी मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब सम्यक् श्रद्धा हो। सम्यक् श्रद्धा के बिना भव्य * जीव भी मुक्ति प्राप्त नही कर सकता। इस तथ्य को समझने के लिए सूर्याभदेव ने दूसरा प्रश्न पूछा-“मै * सम्यग्दृष्टि हूँ अथवा नही हूँ ?' * सम्यग्दृष्टि जीव भी अनन्त काल तक ससार मे परिभ्रमण करने वाले हो सकते है। इसी तथ्य को * जानने के लिए वह पूछता है-“हे भगवन् । मै परिमित काल तक ससार भ्रमण करने वाला हूँ अथवा * अनन्त काल तक मुझे संसार मे भ्रमण करना पडेगा?'' * सुलभबोधि होने पर भी अनेक जीव सम्यग्ज्ञान आदि की यथाविधि आराधना करने मे समर्थ नही हो पाते है। वे लोकैषणाओ, परीषह, उपसर्गो आदि के कारण आराधना से विचलित होकर ससार मे भटक जाते है। अतः सूर्याभदेव ने भगवान से पूछा-“मै धर्म का आराधक ही रहूँगा अथवा धर्ममार्ग से भटक जाऊँगा?" और सबसे अन्त मे अपनी समस्त जिज्ञासाओ का निष्कर्ष जानने के लिए उत्सुकता से पूछा है कि ) "भव्य, सुलभबोधि, आराधक आदि होने पर भी मुझे क्या मुक्ति-प्राप्ति की काल-लब्धि (उपयुक्त समय) प्राप्त हो चुकी है ? संसार मे रहने का मेरा इसके बाद का भव अन्तिम है अथवा और दूसरे भी भवान्तर शेष है?" ये सभी प्रश्न सूर्याभदेव की धर्म-रुचि और मोक्ष-प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा प्रकट करते है। * सूर्याभ वर्णन (69) Description of Suryabh Dev ON DSXXX * M 500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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