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तस्स णं सीहासणस्स चउदिसिं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सोलसण्हं o आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वति, तं जहा-पुरथिमेणं
चत्तारि साहस्सीओ, दाहिणेणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ।
५२. तत्पश्चात् आभियोगिक देव ने उस सिंहासन के पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण), उत्तर और उत्तर-पूर्व (ईशानकोण) में सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवों के बैठने के लिए
चार हजार भद्रासनों की रचना की। ॐ पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्रमहिषियों के लिए चार हजार | भद्रासनों की रचना की।
दक्षिण-पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की आभ्यन्तर परिषद् के आठ हजार देवों के लिए आठ 2 हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिण दिशा में मध्यम परिषद् के देवों के लिए दस हजार ॐ भद्रासनों की, दक्षिण-पश्चिमी दिग्भाग में बाह्य परिषदा के बारह हजार देवों के लिए बारह
हजार भद्रासनों की रचना की। ___ पश्चिम दिशा में सात सेनापतियों के सात भद्रासनों की रचना की।
तत्पश्चात् सूर्याभदेव के सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के लिए क्रमशः पूर्व दिशा में चार हजार, दक्षिण दिशा मे चार हजार, पश्चिम दिशा मे चार हजार और उत्तर दिशा में चार हजार, इस प्रकार कुल सोलह हजार भद्रासनों को स्थापित किया। CONSTRUCTION OF SEATS IN ALL THE FOUR DIRECTIONS
52. Thereafter the Abhiyogic gods constructed four thousand seats for four thousand Samanik gods (the gods of identical status) of Suryabh Dev in the north-west, north and north-east directions.
In the east, he constructed four thousand seats for the family members of Suryabh Dev including his four chief-queens.
In the south-east he constructed ten thousand seats for the gods * belonging to the inner assembly of Suryabh Dev and in the southwest he constructed twelve thousand seats for the gods belonging to be the outer assembly of Suryabh Dev.
In the west he constructed seven seats for the seven army chiefs.
Thereafter he constructed four thousand seats in each of the four directions namely east, south, west and north for sixteen thousand gods serving as body-guards to Suryabh Dev.
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सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Dev
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