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________________ elephant ? An elephant has more age-forming karma and more activity than the Kunthu (three-sensed living being).” ___King Pradeshi asked-“Sir ! How then Kunthu (ant) and elephant have souls similar to each other." दीपक का दृष्टान्त (ख) पएसी ! जहा णामए कूडागारसाला सिया जाव गंभीरा, अह णं केइ पुरिसे जोई व दीवं व गहाय तं कूडागारसालं अंतो अणुपविसइ तीसे कूडागारसालाए सव्वओ समंता 2 घणनिचियनिरंतराणि णिच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेति, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेजा, तए णं से पईवे तं कूडागारसालं अंतो ओभासइ 2 उज्जोवेइ तवति पभासेइ, णो चेव णं बाहिं। ___अहणं पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेजा, तए णं से पईवे तं इड्डरयं अंतो ओभासेइ, * णो चेव णं इड्डरगस्स बाहिं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं, एवं गोकिलिंजेणं, पच्छिपिंडएणं, गंडमाणियाए, आढतेणं, अद्धाढतेणं, पत्थएणं, अद्धपत्थएणं, कुलवेणं, * अद्धकुलवेणं, चाउभाइयाए, अट्ठभाइयाए, सोलसियाए, बत्तीसियाए, चउसट्ठियाए, दीवचंपएणं तए णं से पदीवे दीवचंपगस्स अंतो ओभासति, नो चेव णं दीवचंपगस्स बाहिं, नो चेव णं चउसट्ठियाए बाहिं, णो चेव णं कूडागारसालं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं। ____ एवामेव पएसी ! जीवे वि जं जारिसयं पुवकम्मनिबद्धं बोंदि णिव्वत्तेइ तं असंखेजेहिं * जीवपदेसेहि सचित्तं करेइ खुड्डियं वा महालियं वा, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी ! जहा* अण्णो जीवो तं चेव णं। (ख) केशीकुमार श्रमण- 'हे प्रदेशी । हाथी और कुथु के जीव को समान परिमाण वाला 6 ऐसे समझा जा सकता है-जैसे कोई एक विशाल कुटाकारशाला हो और कोई एक पुरुष अग्नि और दीपक साथ लेकर उस कूटाकारशाला में प्रवेश करे तथा उसके ठीक मध्य भाग मे खडा हो जाए। तत्पश्चात् उस कूटाकारशाला के सभी द्वारों के किवाडों को इस प्रकार सटाकर अच्छी तरह बंद कर दे कि उनमें किंचिन्मात्र भी सॉध-छिद्र नहीं रहे। फिर उस कुटाकारशाला के बीचोबीच उस दीपक को जलाये तो जलाने पर वह दीपक उस कूटाकारशाला के भीतर वाले भाग को ही प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करता " है, किन्तु बाहरी भाग को प्रकाशित नहीं करता है। केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (377) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshhex DN* * * * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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