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________________ ४. उस नगरी के राजा का नाम सेय था। 4. Seya was the ruler of that city. ५. धारिणीदेवी। ५. राजा की रानी का नाम धारिणी देवी था। 5. His wife was Dharini. ६. सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव-राया पज्जुवासइ। ६. भगवान महावीर स्वामी पधारे। वन्दना करने और धर्म-श्रवण करने के लिए परिषदा (जनता) निकली, यावत् राजा भी निकला और पर्युपासना-सेवा करने लगा। 6. Once Bhagavan Mahavir came there. People came to greet him and to listen to his spiritual discourse. The king also came in there. He greeted the Lord and started serving him. विवेचन-प्रस्तुत सूत्र मे 'आमलकप्पा' नगरी का उल्लेख है। भगवान महावीर के प्रसिद्ध वर्णको मे * आमलकप्पां नगरी का कोई उल्लेख प्राप्त नही होता है, न ही उनके विहार-क्षेत्रो की सूची में ही * आमलकप्पा का नाम मिलता है। इससे प्रतीत होता है तीर्थ प्रवर्तन के पश्चात् भगवान महावीर वहाँ * पधारे है। वर्तमान मे आमलकप्पा कहाँ है इस विषय मे कोई निश्चित तथ्य तो उपलब्ध नही है, किन्तु 9 इतिहासकारो का अनुमान है-यह नगरी पश्चिम विदेह राज्य मे श्वेताम्बिका नगरी के समीप ही होनी चाहिए। बौद्ध ग्रन्थो मे वुल्लिम राज्य की राजधानी ‘अल्लकप्पा' का उल्लेख है। इससे अनुमान होता है, * अल्लकप्पा' ही आमलकप्पा नाम से प्रसिद्ध रही हो। यह स्थान शाहाबाद जिले के मसार और वैशाली के बीच अवस्थित था। (रायपसेणियसूत्र की प्रस्तावना - आचार्य देवेन्द्र मुनि जी) नगरी के वर्णन मे औपपातिकसूत्र की तरह वर्णन जानने का सकेत है। __ औपपातिकसूत्र के वर्णन से पता चलता है, नगर के बाहर चारो ओर खूब कृषि भूमि थी। लाखो हल चलने से जहाँ की मिट्टी भुरभुरी, मुलायम और उपजाऊ हो गई थी। वहाँ के किसान कृषि विद्या मे निपुण थे। नालियो व क्यारियो से भूमि की सिचाई करने मे दक्ष थे। खेत-खलिहानो मे धान के ढेर लगे * रहते थे। गाय-भैस, भेडो के टोले के टोले खेतो मे पलते थे। " नगरी के बाहर एक बहुत प्राचीन अम्बसालवन नाम का चैत्य था। 'चैत्य' शब्द से उद्यान और यक्षायतन दोनो ही अर्थ सूचित होते है। अम्बसालवन चैत्य का वर्णन औपपातिकसूत्र मे आता है। उसका सार है “यह चैत्य बहुत प्राचीन था। दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। वह छत्र, ध्वजा, घंटा और पताकाओ से मण्डित था। उसकी वेदियाँ ऊँची बनी हुई थी। दीवारे सफेद मिट्टी से पुती हुई थी। उन पर गोरोचन और ॐ चन्दन के थापे लगे हुए थे। जगह-जगह चन्दन के बने कलश रखे थे। दरवाजे पर तोरण सुशोभित थे। । रायपसेणियसूत्र (4) Rar-paseniya Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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