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________________ * धूपदानो मे अगर लोबान-धूप जलने से महक फूट रही थी। वहाँ दूर-दूर से लोग आते, यज्ञ होता, आहुतियाँ देते, मनौती करते, सेवा करते, दान-दक्षिणा देते और इस आम्रशालवन चैत्य की जय-जयकार करते थे।" ____ उक्त वर्णन से प्रतीत होता है, आमो के उद्यान मे ही अशोक वृक्ष के नीचे कोई बहुत प्राचीन और ॐ विशाल यक्षायतन-यक्ष का प्राचीन स्थान होगा, जहाँ यह सब पूजा-अर्चा होती थी। ____ अशोक वृक्ष के नीचे जडों से लगा पृथ्वीशिलापट्टक-शिला जैसा लम्बा-चौडा पत्थर का पट्ट-पाट या चौकी (चबूतरा) बनी हुई थी, जहाँ भक्तजन पूजा-अर्चा, यज्ञ या प्रसाद चढाना आदि क्रियाएँ करते थे। इस उद्यान मे आम, अनार, अर्जुन, कदम्ब, शाल आदि उत्तम जाति के तरह-तरह के वृक्ष थे। जहाँ पक्षीगण क्रीडाएँ करते रहते, कलरव से गुंजाते रहते और बाहर से आने वाले दर्शक मनोरजन, विश्राम और आरोग्य लाभ प्राप्त करते रहते थे। इस वर्णन से उस समय की नगर सस्कृति का एक सुन्दर चित्र सामने आता है। जहाँ प्रत्येक बडे नगर या राजधानी के बाहर इस प्रकार के विशाल उद्यान होते थे, जहाँ लोगो को धार्मिक आस्था के साथ ही आरोग्य लाभ की प्राप्ति होती थी। इससे नगरो का पर्यावरण शुद्ध रहता और जनता को निःशुल्क मनोरजन व स्वास्थ्य लाभ मिलता था। नगर के राजा का नाम 'सेय' था। स्थानागसूत्र (अ ८) मे भगवान महावीर के पास आठ राजाओ के दीक्षा लेने का वर्णन है। उनमे एक नाम ‘सेय' है। इससे पता चलता है-'सेय' राजा ने भगवान महावीर * के पास दीक्षा भी ग्रहण की। आचार्य मलयगिरि ने इसका सस्कृत रूप 'श्वेत' किया है। रानी का मूल नाम क्या था, यह यहाँ स्पष्ट नहीं है। 'धारिणी' नाम एक सामान्य विशेषण प्रतीत होता है, जो प्रत्येक माता के लिए प्रयुक्त हो सकता है। यह शब्द मातृत्व के प्रति आदरभाव का सूचक है। ___औपपातिकसूत्र के अनुसार 'सेय' राजा भगवान का आगमन सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और हजारो नागरिको के साथ हाथी, घोडे, सेना लेकर दर्शन करने निकला। आम्रशालवन के निकट पहुंचने पर उसने भगवान को समवसरण में विराजमान देखा तो दूर से ही अपने हाथी से नीचे उतरा, उतरकर पाँच राज-चिन्हो को उतारकर रख दिया, जैसे-(१) तलवार, (२) छत्र, (३) मुकुट, (४) जूता, और (५) चामर। इस वर्णन से महापुरुषो, तीर्थकरो व साधु-सन्तो के निकट जाने की सभ्यता सूचित होती है कि त्यागी पुरुषो के समक्ष बड़े से बड़ा राजा भी अपने अहकार व गौरव के सूचक चिन्हो का त्याग कर नम्रता धारण करके जाता है। धर्मस्थलो में जूता उतारकर जाने की भारत की सस्कृति अत्यन्त प्राचीन है। __ इसके अलावा पाँच अभिगम करके तीर्थकरो की सभा में प्रवेश किया जाता है। वे अभिगम इस प्रकार है (१) सचित्त-पुष्पमाला आदि का त्याग। (२) अचित्त-वस्त्र आदि को व्यवस्थित धारण करना। (३) एक शाटिका (दुपट्टा) का उत्तरासग करना-मुख पर रखना। सूर्याभ वर्णन (5) Description of Suryabh Dev GOVERNORTHODTCOVEODOHORVADITION Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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