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“हे भदन्त ! आप सब जानते है और सब देखते हैं, सर्वत्र लोक-अलोक में विद्यमान समस्त पदार्थों को जानते हैं और देखते हैं। सर्व काल-भूत, भविष्य, वर्तमान को आप जानते
और देखते हैं; सर्व भावो (पर्यायों) को आप जानते और देखते हैं। की अतएव हे देवानुप्रिय । पूर्व के और आगे के भव को आप जानते हैं तथा मुझे जो यह ॐ दिव्य देवऋद्धि आदि प्राप्त एव अधिगत हुई है, इसको भी जानते और देखते हैं। अतएव * आप देवानुप्रिय की भक्तिवश होकर मै चाहता हूँ कि गौतम आदि निर्ग्रन्थों के समक्ष इस दिव्य देवऋद्धि (ऐश्वर्य-सम्पदा), दिव्य देवद्युति (शरीर व आभूषणों की दीप्ति-कांतिचमक), दिव्य देवानुभाव-(तेज और अद्भुत-शक्ति-सामर्थ्य) तथा बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि-नाट्यकला को प्रदर्शित करूँ।' REQUEST OF SURYABH DEV
72. At this reply of Bhagavan Mahavir Suryabh Dev was pleased, satisfied, overjoyed and in a fit of ecstatic pleasure, he bowed to Bhagavan Mahavir. Thereafter, he requested as under___"O the Reverend Sir | You are omniscient, you know every thing, you know and see all the substances in the world (Lok) and the world beyond (Alok). You know and see all the events and state in the past, present and future. You know all the modes. ____Therefore, O the beloved of gods (Devanupriya) ! You know my previous life-span and the future life-span You also know the cause of my present celestial state and grandeur. So, expressing my deep devotion towards you, I wish to exhibit before Gautam and other saints (Nirgranths) of the order, the celestial wealth, godly
ghtness (of celestial bodies and ornaments) heavenly strength and thirty two types of theatrical performances."
७३. तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे सूरियाभस्स देवस्स एयमढे णो आढाति, णो पारियाणति, तुसिणीए संचिट्ठति।
७३. सूर्याभदेव के इस प्रकार निवेदन करने पर श्रमण भगवान महावीर ने सूर्याभदेव के इस कथन का आदर नही किया। उसकी अनुमोदना नही की, किन्तु वे मौन रहे।
73. Bhagavan Mahavir did not pay any attention to this request of Suryabh Dev. He did not support it. He remained silent.
रायपसेणियसूत्र
(72)
Rar-paseniya Sutra
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