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भगवान महावीर द्वारा समाधान
७१. 'सूरियाभा' इ समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासीसूरियामा ! तुमं णं भवसिद्धिए नो अभवसिद्धिए जाव चरिमे णो अचरिमे। ७१. सूर्याभदेव को सम्बोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने इस प्रकार उत्तर दिया
"हे सूर्याभ ! तुम भवसिद्धिक हो, अभवसिद्धिक नहीं हो यावत् चरमशरीरी हो अर्थात् इस भव के पश्चात् का तुम्हारा मनुष्यभव अन्तिम होगा, अचरमशरीरी नहीं हो।" REPLY OF BHAGAVAN MAHAVIR TO THE QUERIES ___71. Bhagavan Mahavir addressed Suryabh Dev as under
“O Suryabh Dev ! You are fit for liberation (Bhavsiddhik), you are not unfit for it; ultimately you are Charam Shareeri (passing through final celestial life-span). In other words after this life-span, your human birth shall be the final one. You are not going to undergo any further mundane worldly lives.” सूर्याभदेव द्वारा मनोभावना का निवेदन
७२. तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ चित्तमाणदिए परमसोणस्सिए समणं भगवंतं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
तुभे णं भंते ! सव्वं जाणह, सव् पासह, सव्वं कालं जाणह, सब् कालं पासह, सब्वे भावे जाणह, सवे भावे पासह।।
जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुष् िवा पच्छा वा मम एयारूवं दिव्यं देविड्ढि दिव्यं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति। तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्तियुव्वगं गोयमाइयाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्तए। ___७२. श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सुनकर सूर्याभदेव ने हर्षित, सन्तुष्ट चित्त, आनन्दित और परम प्रसन्न होते हुए श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन कियासूर्याभ वर्णन
Description of Suryabh Dev
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