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I pay homage to Skandilacharya whose Anuyogs are still popular in the Ardhabharat Kshetra (India) and whose glory has swarmed many cities.
विवेचन-आचार्य स्कन्दिल- आचार्य स्कन्दिल का जन्म मथुरा के ब्राह्मण मेघरथ और उनकी पत्नी रूपसेना के घर में हुआ । इनका नाम सोमरथ था तथा इनका परिवार आरम्भ से ही जैन धर्मावलम्बी था। आचार्य सिंह के एकदा मथुरा प्रवास के समय सोमरथ उनके प्रवचन से प्रभावित हो दीक्षित हो गये। अपने गुरु के निकट इस प्रतिभा सम्पन्न युवक ने सम्पूर्ण उपलब्ध श्रुतज्ञान का अध्ययन किया। इनका सर्व सम्मत कार्यकाल वी. नि. ८२३ से ८४० के आसपास था। भारत के इतिहास में यह एक विषम काल था । मध्य भारत में हूणों तथा गुप्तों के बीच युद्ध चल रहे थे 5 तथा किसी प्रभावी सम्राट् के अभाव में छोटे-छोटे राज्य परस्पर युद्धरत थे। इसी समय १२ वर्ष का भीषण दुर्भिक्ष भी पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में आगम ज्ञान पुन छिन्न-भिन्न होने लग गया था। आचार्य स्कन्दिल ने बी. नि. ८३० से ८४० (३६१ से ३७१वि., ३०४ से ३१४ ई.) की बीच किसी समय उत्तर भारत के श्रमणों को मथुरा में एकत्रित कर आगमों की वाचना की और अनुयोग व्यवस्थित किये गये। जैन इतिहास में यह माथुरी वाचना के नाम से प्रसिद्ध है तथा आज जैन आगमों का जो रूप उपलब्ध है वह उसी वाचना की देन है। इस सम्बन्ध में एक उल्लेख यह भी मिलता है कि मथुरा के एक ओसवंशीय श्रावक पोलाक ने उन सूत्रों को ताड़पत्रादि पर लिखवाकर मुनियों को भेंट किया था।
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आगम ज्ञान को नष्ट होने से बचाकर आर्य स्कन्दिल ने जिनशासन की जो अमूल्य सेवा की 55 उसके लिए समस्त जैन धर्मावलम्बी ही नहीं, विश्व साहित्य भी उनका चिरकाल तक ऋणी रहेगा । Elaboration-Acharya Skandil-He was born in Mathura. His parents were Brahman Megharath and Roopsena. His name was 近 Somarath and his family was originally Jain. Once during a Mathura stay of Acharya Simha, Somarath got impressed with his discourse and got initiated. He studied the extant scriptural knowledge under 555 his guru. There is a unanimity about his period of activity being between 823 and 840A.N.M. This was a period of turmoil in Indian History. In the central part of India battles raged between the Huns and the Guptas and in absence of some influential central power the smaller kingdoms were continuing to feud with one another. During this period also there was a twelve year drought. In such troubled times the scriptural knowledge once again started to deplete. Some
hi time between 830 and 840 A.N.M. (361 and 371 V, 304 and 314 A.D.) फ्र
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he invited all the shramans from northern India at Mathura. This congregation of scholarly ascetics accomplished the task of reciting and compiling the scriptures and reorganizing the Anuyogs. In the श्री नन्दी सूत्र
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Shri Nandisutra
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