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इन्द्रिय एवं मन का दमनरूप नियम दमनरूप नियम जिसका स्वर्णमय शिलातल है। शुभ अध्यवसाय युक्त उदात्त चित्त जिसके ऊँचे कूट (शिखर) हैं। जहाँ सन्तोषरूपी नन्दनवन है, जिसमें शीलरूपी सुगन्ध महक रही है।
जिसमें जीवदयारूपी सुन्दर कन्दराएँ ( गुफाएँ) हैं, जहाँ परवादीरूप मृगों पर विजय
प्राप्त करने वाले मुनिगणरूपी सिहों का निवास है। हेतु एवं युक्तिरूप धातुओं से जिसकी
प्रभा बढ़ रही है। जो अट्ठाईस प्रकार की लब्धिरूप औषधियों से युक्त है तथा जहाँ धर्म प्रवचनशालारूप कन्दराएँ हैं।
संवररूप जल के निर्मल झरने जहाँ प्रवाहित हो रहे हैं । जहाँ श्रावकजनरूपी मयूर
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5 आनन्द विभोर होकर नृत्य करते हुए प्रतिपल पंचपरमेष्ठी का स्तुति गान कर रहे हैं, जिनकी मधुर ध्वनियों से वह प्रवचन स्थलरूप गुफा मुखरित हो रही है ।
विनय गुण से युक्त विनम्र ( झुके हुए) मुनिजनों की कीर्तिरूपी विद्युत् की चमक से संघमेरु के शिखर चमक रहे हैं। अनेक प्रकार के मूलगुण- उत्तरगुणों से युक्त मुनिजन जहाँ कल्पवृक्ष के समान शोभित होते हैं। जिन पर धर्मरूपी (विनय, क्षमादि विविध गुण वाले) फूल और फल लगे हुए हैं। मुनियों के समूह विविध वनों की तरह जन- जन हेतु आश्रय स्थल बने हुए हैं।
सम्यग्ज्ञानरूपी श्रेष्ठ रत्न उस गिरि की वैडूर्यमयी ( लसनिया) चूला जैसे प्रतीत होते ऐसे संघरूपी महामन्दर गिरि को मैं विनयपूर्वक वन्दन करता हूँ।
The sangh is like the Maha-mandar mountain. The base of this great mountain is made up of diamonds of right perception and which is free of cleavages like doubt. It has deep foundation of interest in fundamentals. It is embellished with the gems of dharma (virtues of character) and it has a golden girdle of virtues like magnanimity.
It has outcrops of rocks of the vows of subduing senses and mind. The lofty attitude of pursuit of virtues form its cliffs. It has the Nandan forest of contentment which is filled with the fragrance of chaste disposition.
It has beautiful caves of clemency (jiva-daya) where dwell the lion-like ascetics who overpower the deer-like antagonists. The metals of reason and theme add to its splendor. It abounds in herbs of twenty eight types of labdhis (special skills, प्रस्तुतियां
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Panegyrics
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