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NA LE HO attainments or powers). There are caverns of discourse halls 卐 scattered around it. .
Pure streams of samvar (to stop the inflow of karmas by 5 controlling the desires) flow here. Pea-cock like shravaks dance
here in ecstasy and sing hymns of five ultimate benefactors every moment. Echo of these musical sounds emanate from the caverns of discourse halls.
The cliffs of the sangh-mountain are resplendent with the sparks of glory of the self-effacing ascetics who effuse with the 44 virtue of humbleness. It is beautified by the wish-fulfilling trees
that are the ascetics having basic and auxiliary attributes of -
asceticism. These trees are loaded with flowers and fruits of Si religious conduct (humbleness, forgiveness etc.). Jungle like
clusters of these trees that are ascetics have become places of 5 shelter for masses.
The best of the gems, the right knowledge, appears like its 5 highest peak made up of cat's-eye. I offer my humble obeisance to such Maha-mandar mountain like sangh.
विवेचन-श्रीसंघ को मेरु गिरि की उपमा देकर उसकी वन्दना की गई है। मेरु पर्वत जम्बूद्वीप के मध्य भाग में स्थित है तथा पृथ्वी में एक हजार योजन गहरा तथा निन्यानवे हजार योजन ॐ ऊँचा है। मन में उसका व्यास दस हजार योजन है। उस पर चार विशाल सुन्दर रमणीय वन हैं-ॐ 5 (१) भद्रशान्नवन (पृथ्वीतल पर चारों ओर फैला हुआ), (२) नन्दनवन (पाँच सौ योजन ऊपर),
(३) सोमनसवन (उससे ६२,५00 योजन ऊँचा), (४) पाण्डुकवन (उससे ३५,000 योजन ॐ ऊँचा)। उसके तीन कण्डक हैं-रजतमय, स्वर्णमय और विविध रत्नमय। इसकी चोटी (चूला)
चालीस योजन की है। यह पर्वत विश्व में सबसे ऊँचे पर्वतों में है। (चित्र सं. ४ देखें) 卐 संघ को मेरु पर्वत की उपमा इस प्रकार दी गई है-सम्यग्दर्शन इसकी आधारशिला है। शम,
दम, नियम, उपशम आदि स्वर्णशिलाएँ हैं। उच्च शुभ अध्यवसायरूप ऊँचे कूट (शिखर) हैं।
स्वाध्याय, शील, सन्तोष आदि इसके नन्दनवन हैं जहाँ आकर देव एवं मनुष्यगण आनन्द का 5 + अनुभव करते हैं। आमर्ष आदि २८ लब्धियाँ इस पर्वत की दिव्य औषधियाँ हैं। मुनिजन कल्पवृक्ष
के समान हैं। यहाँ संवर चारित्ररूप धर्म के विशुद्ध जल-प्रपात (झरने) प्रवाहित हो रहे हैं। जिस क प्रकार मेरु पर्वत प्रलयकालीन तूफानों से भी निष्प्रकम्प रहता है उसी प्रकार यह जिनशासन
मिथ्यावादियों के कुतर्क प्रहारों से कभी प्रकम्पित नहीं होता। श्री नन्दीसूत्र
( १२ )
Shri Nandisutra 中断断断断与防务部的断断断断断步步助5555555555559
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