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आहार की गवेषणा करते दोनों मुनि जब सुनन्दा के द्वार पर पहुंचे तब वह अपने रोते पुत्र 卐 को चुप करने की चेष्टा कर रही थी। मुनि धनगिरि ने आहार पात्र आगे किया। यह देख सुनन्दा
के मन में एक विचार कौंध गया। उसने बालक को पात्र में रख दिया और बोली-“महाराज ! ॐ अपने बालक को अब आप ही सँभालें। मैं तो इससे तंग आ चुकी हूँ।" आसपास खड़े सभी लोग
आश्चर्य से देख रहे थे। मुनि ने सबके सामने ही भिक्षा ग्रहण की और बिना कुछ बोले धीरे-धीरे
लौट गए। सभी को और भी अधिक आश्चर्य तब हुआ जब मुनि के पात्र में पड़ा बालक उनके _ वहाँ से पलटते ही चुप हो गया।
आचार्य सिंहगिरि के पास पहुँचने पर जब उन्होंने इतनी भारी झोली देखी तो बोले-"यह वज्र जैसी भारी क्या वस्तु भिक्षा में ले आए?' धनगिरि ने झोली से बालक सहित पात्र निकाला और गुरु के सामने रख दिया। गुरु उस तेजस्वी बालक को देखकर चकित भी हुए और प्रसन्न भी। उन्होंने कहा-“यह बालक भविष्य में जिनशासन का आधार बनेगा। इसका नाम आज से वज्र है।"
बालक नन्हा था अतः उसके पालन-पोषण का दायित्व संघ को सौंप दिया गया। शिशु वज्रम जैसे-जैसे बड़ा होने लगा उसकी प्रतिभा और तेजस्विता और भी बढ़ती गई। कुछ समय बाद । सुनन्दा ने संघ से अपना पुत्र वापस मांगा। संघ ने उसे यह कहकर बालक को देने से मना कर दिया कि वह किसी अन्य की अमानत है। सुनन्दा निराश हो लौट आई और अवसर की प्रतीक्षा करने लगी। आखिर एक दिन उसे अवसर प्राप्त हुआ जब एक बार फिर आचार्य सिंहगिरि अपने शिष्यों सहित तुम्बवन पधारे। उनके आने का समाचार सुनते ही सुनन्दा उनके पास पहुंची
और अपना पुत्र लौटाने को कहा। आचार्य के मना कर देने पर वह दुःखी मन से राजा के पास पहुँची। राजा ने उसकी बात सुनी और सोच-समझकर निर्णय सुनाया-“एक ओर बच्चे की माँ __ और दूसरी ओर मुनि बने उसके पिता को बैठाया जाय। बच्चा दोनों में से जिसके पास चला
जाए उसे ही रखने का अधिकार होगा।" __दूसरे दिन राजसभा में आवश्यक प्रबन्ध किया गया। सुनन्दा बच्चों को लुभाने वाले खिलौने
और ललचाने वाली अनेक खाद्य वस्तुएँ लेकर एक ओर बैठी। ये वस्तुएँ दिखा-दिखाकर राजसभा के बीच में बैठे अपने पुत्र को अपने पास आने का संकेत करती रही।
बालक ने मन में सोचा-“यदि मैं माता के पास नहीं गया तभी वह मेरा मोह त्याग आत्म-कल्याण के मार्ग पर चलने को प्रेरित होगी। इससे हम दोनों का ही कल्याण होगा।'' यह विचार कर वह अपने स्थान से हिला भी नहीं। तब उसके पिता मुनि धनगिरि ने उसे संबोधित कर कहा
"जइसि कयज्झवसाओ, धम्मज्झयमूसिअं इमं वइर !
गिण्ह लहु रयहरणं, कम्म-रयपमज्जणं धीर !!" __ मतिज्ञान ( पारिणामिकी बुद्धि)
( २८३ ) Mati.jnana (Parinamiki Buddhi) $55555555555555555555555555岁5555555
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