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________________ )))))))))))))) Onnnnnnnihintihiinhi55555550 मुनि ने समझाते हुए कहा-“यदि तुम थोड़ा भी धर्माचार करो तो ऐसी अनेक सुन्दरियाँ तुम्हें सहज ही प्राप्त हो सकेंगी।" ॐ मुनि के ये प्रतिबोधयुक्त वचन सुनकर सेठ समझ गया कि उनका मूल उद्देश्य क्या था। विचारों की धारा मुड़ चली और धीरे-धीरे उसकी अपनी पत्नी में आसक्ति कम होने लगी। कुछ काल बीतने पर उसने संयम ग्रहण किया और आत्म-कल्याण के मार्ग पर बढ़ गया। ___ मुनि ने अपनी पारिणामिकी बुद्धि का उपयोग कर भाई को विषयासक्ति से मुक्त कराया। । (१५) वज्र स्वामी-अवन्ती प्रदेश में तुम्बवन नाम का एक सन्निवेश था। उस सन्निवेश में धनगिरि नाम का एक श्रेष्ठिपुत्र रहता था। धनपाल सेठ की पुत्री सुनन्दा के साथ उसका विवाह म हुआ था। विवाह के बाद धनगिरि के मन में संयम ग्रहण करने की अभिलाषा जाग उठी थी किन्तु सुनन्दा ने अनुनय-विनय कर किसी प्रकार उसे रोक लिया था। कुछ समय पश्चात् सुनन्दा ज गर्भवती हुई और देवलोक से च्यवकर एक भव्य आत्मा उसके गर्भ में आई। - सुनन्दा को गर्भवती जान धनगिरि ने कहा-“अब तुम जिस पुत्र को जन्म दोगी उसके सहारे म जीवन-यापन कर सकोगी। अब मैं बिना विलम्ब के दीक्षा ग्रहण करूँगा। मुझे रोको मत।" ॐ पति की ऐसी तीव्र इच्छा के आगे सुनन्दा को झुकना पड़ा। उसने धनगिरि को दीक्षा की स्वीकृति दे दी। धनगिरि आचार्य सिंहगिरि के पास गए और दीक्षा ग्रहण कर ली। सुनन्दा के भाई आर्य समित भी आर्य सिंहगिरि के शिष्य थे। कुछ दिनों बाद आर्य सिंहगिरि तुम्बवन से प्रस्थान + कर ग्रामानुग्राम विचरण करने लगे। सुनन्दा ने यथासमय एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। जब उसका जन्मोत्सव मनाया जा रहा ॐ था तब एक महिला उसे देख करुणा भरे स्वर में बोली-'इस बालक का पिता मुनि न होकर आज इसके पास होता तो कितना अच्छा होता।" यह बात जब बच्चे के कान में पड़ी तो उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। वह विचार * करने लगा-“मेरे पिताजी ने तो आत्म-कल्याण का मार्ग अपना लिया है। मुझे भी कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे मैं भी संसार के बंधनों से मुक्त हो सकूँ और मेरी माँ भी मुक्ति के E मार्ग पर बढ़ सके।” इन विचारों के आने पर बालक ने रात-दिन रोना आरम्भ कर दिया। ॐ उसका रोना बंद करने के लिए उसकी माँ ने तथा सभी स्वजनों ने अनेक उपाय किए पर किसी को भी सफलता नहीं मिली। सुनन्दा बालक के इस रुदन से तंग आ गई। म संयोगवश आर्य सिंहगिरि अपने शिष्यों सहित विहार करते हुए पुनः तुम्बवन पधारे। आहार का समय होने पर मुनि आर्यसमित और धनगिरि नगर की ओर जाने को प्रस्तुत हुए। आचार्य से + आज्ञा मॉगी तो शुभ शकुन देखकर उन्होंने कहा-“आज तुम्हें महान् लाभ प्राप्त होगा अतः भिक्षा : में जो कुछ मिले ले आना।" FF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 )))))))))))))))))))) श्री नन्दीसूत्र ( २८२ ) Shri Nandisutra ज) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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