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practices, is indeed, unique among ascetics. What gurudev had said is
卐 true.”
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Tortured by the pain of his fall, the thoughtful ascetic returned to his guru. He narrated the story of his downfall to his teacher and 4 repented for and atoned his sins. Criticizing himself and praising 5
Sthulibhadra he said—“I bow before and offer my respect to ascetic Sthulibhadra who; in spite of all the enticements like an attracted
and infatuated courtesan, rich food, attractive palace, healthy b 5 blooming youth and monsoon season, won over the god of love and 1 put the courtesan on the spiritual path by his sermon."
Thus with the help of his Parinamikı Buddhi, Sthulibhadra abandoned the post of prime minister, mundane pleasures, wealth 4 and grandeur to attain spiritual bliss. He is worthy of all praise.
(१४) नासिकपुर का सुन्दरीनन्द-नासिकपुर में नन्द नामक एक सेट रहता था। उसकी + अत्यन्त रूपवती स्त्री का नाम सुन्दरी था। सेठ उसमें इतना अनुरक्त था कि पलभर को भी उसे क में अपनी आँखों से ओझल नहीं करता था। पत्नी के प्रति ऐसी आसक्ति के कारण लोग उसे ही 卐 सुन्दरीनन्द ही कहने लगे।
सेठ का एक छोटा भाई था जो संसार से विरक्त हो मुनि बन गया था। उसे जब ज्ञात हुआ कि उसका भाई अपनी पत्नी के प्रेम में सभी कुछ भूला बैठा है तो वह अपने भाई को प्रतिबोध क
देने के उद्देश्य से नासिकपुर आया। मुनि के आगमन का समाचार सुन नगरवासी उपदेश सुनने में ॐ के लिए आए किन्तु सुन्दरीनन्द नहीं आया।
प्रवचन समाप्त करने के पश्चात् मुनि आहार-गवेषणा हेतु निकले और घूमते-घूमते अपने भाई के घर आ पहुँचे। अपनी आँखों से अपने भाई की स्थिति देख मुनि के मन में विचार
आया-जब तक इसे इससे अधिक प्रलोभन नहीं मिलेगा, इसकी आसक्ति कम नहीं होगी। यह ॐ विचार कर उन्होंने अपनी वैक्रियलब्धि से एक सामान्य स्त्री बनाई और सेठ से पूछा-"क्या यह सुन्दरी जैसी है?"
सेठ ने उत्तर दिया-“नहीं ! यह तो उससे आधी सुन्दर भी नहीं लगती।" तब मुनि ने एक विद्याधरी बनाई और पूछा-“यह कैसी लगी?" सेठ ने कहा-“हाँ ! यह सुन्दरी जैसी है।" तीसरी बार मुनि ने एक देवी की रचना की और पुनः वही प्रश्न किया। इस बार सेठ ने प्रभावित होकर कहा-“सचमुच, यह तो सुन्दरी से भी अधिक सुन्दर है।"
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मतिज्ञान (पारिणामिकी बुद्धि)
( २८१ ) Mati.jnana (Parinamiki Buddhi) 05555555555555555555510
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