SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 第 岁 %%% % %% %%% %%%%%%%% %%%% 54 अर्थात् “हे वज्र ! यदि तुमने पक्का निश्चय कर लिया है तो धर्म-साधना के चिह्नभूत और * कर्मरज को दूर करने वाले इस रजोहरण को ग्रहण करो।" ये शब्द सुनते ही बालक वज्र तत्काल अपने पिता के पास गया और रजोहरण उठा लिया। है यह देख राजा ने तत्काल बालक आचार्य सिंहगिरि को सौंप दिया। उन्होंने भी उसी समय संघ ॐ तथा राजा से अनुमति लेकर उसे दीक्षित कर दिया। । । सुनन्दा को भी संसार से विराग हो गया। उसने सोचा-"जब मेरे भाई, पति और पुत्र सभी ऊ सांसारिक सम्बन्धों को तोड़ दीक्षा ले चुके हैं तो मैं अकेली घर में रहकर क्या करूँगी?" उसने म भी संयम ग्रहण किया और आत्म-कल्याण की राह पर चल पडी। म यथासमय अपने शिष्य-समुदाय सहित आचार्य सिंहगिरि ने भी प्रस्थान किया। वज्र मुनि अत्यन्त मेधावी थे। जब आचार्य अन्य मुनियों को वाचना देते तब वे एकाग्रचित्त हो सुनते रहते। इस प्रकार सुन-सुनकर ही उन्होंने क्रमशः ग्यारह अंगों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया। एक दिन आचार्य उपाश्रय से बाहर गए हुए थे। अन्य मुनि आहार के लिए भिक्षाटन को गए. थे। बालक वज्र मुनि ने खेल-खेल में संतों के वस्त्रादि को एक पंक्ति में सजा दिया और स्वयं म उनके बीच बैठ गए। वस्त्रों को अपना शिष्य मान उन्होंने वाचना देना आरंभ किया। जव आचार्य ॥ उपाश्रय में लौट रहे थे तो उन्होंने वाचना के स्वर सुने; वे निकट आकर ध्यान से सुना और वज्र मुनि की आवाज को पहचान लिया। वाचना शैली और बालक के अद्भुत ज्ञान को देख वे ॐ आश्चर्यचकित हो गए। वे विभोर हो आगे बढ़े और वज्र मुनि के पास पहुंचे। वज्र मुनि ने + उठकर उन्हें विनयपूर्वक वन्दना की और फिर सभी उपकरणों को यथास्थान रख दिया! ॐ कुछ समय बाद आचार्य सिंहगिरि कुछ दिनों के लिए अन्य प्रदेश की ओर विहार कर गये और जाते समय वाचना का दायित्व वज्र मुनि को सौंप गए। बालक वज्र मुनि आगमों के सूक्ष्मतम रहस्यों को इतनी सहज ग्राह्य शैली में समझाते कि मंद बुद्धि मुनियों को भी समझने में ॐ असुविधा नहीं होती थी। उन्होंने शास्त्रों की विस्तृत व्याख्या के द्वारा मुनियों के द्वारा पूर्व में प्राप्त ज्ञान में रही शंकाओं का भी समाधान कर दिया। सबके मन में उनके प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो गई और वे विनयपूर्वक उनसे वाचना लेते रहे। जब आचार्य सिंहगिरि लौटे तो मुनियों ने उनसे कहा-"गुरुदेव ! वज्र मुनि की वाचना शैली * अति उत्तम है कृपया यह कार्य सदा के लिए उन्हें ही सौंप दें।" आचार्य यह सुनकर सन्तुष्ट व ॐ प्रसन्न हुए और बोले-"वज्र मुनि के प्रति आपका स्नेह व सद्भाव देख मैं सन्तुष्ट हुआ। मैंने + इनकी योग्यता व कुशलता से परिचित कराने के लिए ही यह उत्तरदायित्व इन्हें देकर विहार E किया था।" और तब यह विचार कर कि गुरु द्वारा ज्ञान ग्रहण किए बिना कोई वाचना गुरु नहीं ॐ बन सकता, आचार्य सिंहगिरि ने वज्र मुनि को अपना समस्त ज्ञान स्वयं प्रदान किया। गॉव-गॉव विहार करते आचार्य सिंहगिरि एक बार दशपुर नगर पहुंचे। उस समय अवन्ती ।। के नगरी में वृद्धावस्था के कारण आचार्य भद्रगुप्त स्थिरवास कर रहे थे। आचार्य सिंहगिरि ने अपने 断听听听听听听听听听听听听听听听听$F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 4ss玩乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$ $$$听听听听听听听听听听 卐 श्री नन्दीसूत्र (२८४ ) Shri Nandisutra $555与结万岁第55555岁步步步步步步步步步步步步步步步步步步5分 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy