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________________ 5 卐 55555555555555555 SO अभयकुमार - " आप मेरी बात पर विश्वास न करें। अपनी आँखों से चलकर देखें ।" रात में ही चण्डप्रद्योत काली चादर ओढ़ घुमते हुए अभयकुमार के साथ अपने प्रमुख सेनानायकों के खेमों की ओर गया और अभयकुमार ने गडा हुआ धन निकाल कर दिखा दिया । चण्डप्रद्योत को अब अभयकुमार की बात पर पूरा विश्वास हो गया । वह चुपचाप एक घोड़े पर सवार हो बिना किसी से कुछ कहे उज्जयिनी की ओर प्रस्थान कर गया । प्रातः काल जब सेनानायक मंत्रणा हेतु चण्डप्रद्योत के डेरे पर आये तो उन्होंने देखा कि वहाँ न तो राजा है न उसका घोड़ा। खोज करने पर पता चला कि राजा के घोड़े के निशान उनके उज्जयिनी की ओर जाने का इंगित कर रहे हैं। अपने राजा के इस अप्रत्याशित कार्य से हतोत्साह सेनानायक पूरी सेना सहित उज्जयिनी को लौट गये । उज्जयिनी पहुँच करके राजा से मिलने महल में गये। पहले तो राजा ने उनसे मिलने को मना कर दिया । बहुत अनुनय विनय के बाद राजा उनसे मिला और वे कुछ कहते इससे पहले ही उन्हें रिश्वत लेने एवं विश्वासघात करने के लिए बहुत फटकारना आरम्भ कर दिया। सेनापति ने राजा के ये तेवर देख विनम्र स्वर में कहा - "महाराज ! आपने यह कैसे विश्वास कर लिया कि हम आपको धोखा दे सकते हैं? पीढ़ियों से आपकी सेवा में हैं। अनेक युद्ध लड़े हैं। हम सभी देश भक्त हैं। आपके साथ विश्वासघात करने का कोई कारण नहीं है । यह उस धूर्त अभयकुमार की कूटनीति का प्रहार था। उसने आपको विश्वास में ले अपने राज्य को युद्ध से साफ-साफ बचा दिया । " चण्डप्रद्योत की आँखें खुल गई। अभयकुमार के प्रति उसके क्रोध की सीमा न रही। उसने तत्काल राज्य में घोषणा करवा दी कि जो कोई भी अभयकुमार को बन्दी बनाकर उज्जयिनी ले आयेगा उसे बहुमूल्य पुरस्कार दिया जायेगा । अभयकुमार की कुशाग्रता और चतुराई की ख्याति इतनी व्यापक थी कि किसी का साहस नहीं हुआ कि यह बीड़ा उठाले । राजा के मंत्री, सेनानायक, चतुर व्यवसायी कोई भी अभयकुमार को बन्दी बनाने को तैयार नहीं हुए । कुछ दिन बीतने पर एक गणिका ने यह बीड़ा इस शर्त पर उठाया कि उसे आवश्यक व्यय के लिए यथेष्ट धन दिया जाये। राजा तत्काल तैयार हो गया। गणिका अपने साथ कुछ अन्य स्त्रियों को लेकर श्राविकाओं का वेष धारण कर राजगृह गई। वहाँ कुछ दिनों तक खूब धर्मध्यान का आडम्बर फैलाया। नियमित रूप से धर्मस्थलों तथा धर्मसभाओं में जाने लगी। जब उसकी प्रतिष्ठा एक परम धार्मिक श्राविका के रूप में जम गई तब उसने योजना बना अभयकुमार को आमन्त्रित किया। अभयकुमार ने साधर्मी जानकर ख्याति प्राप्त निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। गणिका ने भोजन में नशीली दवा मिला दी । अभयकुमार भोजन ग्रहण करते ही मूर्च्छित हो गया। गणिका इसी अवसर की उत्कंठा से प्रतीक्षा कर रही थी । उसने तत्काल मूर्च्छित अभयकुमार को बन्दी बना रथ में डलवाया और उज्जयिनी के लिए रवाना हो गई। मतिज्ञान (पारिणामिकी बुद्धि ) Jain Education International ( २४७ ) For Private & Personal Use Only Mati-jnana (Parinamiki Buddhi) फफफफफफफ 5 @ www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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