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________________ HEHRA ) 卐yyyy 55岁5岁岁的555555%%%%%%%%%%% %%$ * कुछ दिनों बाद शिक्षक ने अपने प्रस्थान के समय की घोषणा कर दी। उसकी विदाई के दिन उसके शिष्य तथा उत्सुकतावश उनके अभिभावक भी आए। उन सभी के सामने शिक्षक मात्र के उन्हीं वस्त्रों में जो उसने पहने हुए थे, बिना किसी अन्य सामान या गठरी को हाथ में लिए सबसे 卐 विदा लेकर चल दिया। अभिभावकों को आश्चर्य हुआ कि वह जैसे आया था वैसे ही अकिंचन के समान जा रहा है। उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि उसके पास कुछ नहीं है अतः राह में उसे लूटने-मारने का विचार छोड़ दिया। ८. अर्थशास्त्र (नीतिशास्त्र)-एक व्यक्ति के दो पत्नियाँ थीं। एक के एक पुत्र था और दूसरी बाँझ। दोनों ही समान रूप से बच्चे का लालन-पालन करती थीं अतः बालक को यह पता नहीं ॐ था कि उसकी असली माँ कौन है। एक बार वह वणिक् अपनी पत्नियों और पुत्र सहित अयोध्या नगरी में आया जहाँ सम्राट् मेघ (भगवान सुमतिनाथ के पिता) का राज्य था। यहाँ दुर्भाग्यवश उस वणिक् का देहान्त हो गया। दोनों पत्नियों में पुत्र को लेकर विवाद हो गया क्योंकि संपत्ति का स्वामित्व पुत्रवती मॉ को मिलता है। ॐ यह विवाद राजा मेघ के समक्ष पहुंचा। वे भी न्याय न कर सके। जब महारानी सुमंगला को पता चला तो उन्होंने दोनों स्त्रियों को बुलवाया और कहा-“मैं गर्भवती हूँ और कुछ माह बाद मेरे पुत्र जन्म लेगा। वही कुछ वर्ष का होने पर तुम्हारा न्याय करेगा। तब तक तुम सब यहीं ॐ आनन्द से रहो।" वंध्या ने विचार किया-“यह तो अच्छा अवसर है। रानी के पुत्र को बड़ा होने में तो कुछ वर्ष + लगेंगे तब तक राजसी ठाट का आनन्द क्यों न लिया जाए। जब न्याय होगा तब देखा जाएगा।' यह सोचकर उसने तत्काल अपनी स्वीकृति दे दी। जिसका पुत्र था वह इस असमंजस में पड़ी रही है कि उसे पुत्र चाहिए, राजसी ठाट नहीं। पर महारानी को अपनी बात कह कैसे कुपित करें। ___महारानी तत्काल समझ गईं कि उनका प्रस्ताव स्वीकार करने वाली बाँझ स्त्री है। उसे दण्ड म दिया गया और पुत्र उसकी असली माता को सौंप दिया गया। ९. इच्छायमहं (जो तुम चाहो वह मुझे दो)-किसी नगर में एक सेठ रहता था। एक दिन ॐ उसकी अकाल मृत्यु हो गई। उसकी पत्नी को उसका व्यवसाय सँभालने की बड़ी कठिनाई होने लगी। जो धन सेठ ने ब्याज पर दिया हुआ था वह किसी प्रकार वसूल नहीं हो रहा था। अन्ततः उसने सेठ के एक मित्र को बुलाया और कहा-"आप अनुग्रह कर मेरे पति का ब्याज पर लगा धन वसूल करने में मेरी सहायता करें।" सेठ का वह मित्र बड़ा स्वार्थी था। उसने सेठानी से 5 कहा-“यदि आप मुझे उस धन में कुछ हिस्सा दें तो मैं सारा पैसा वसूल कर सकता हूँ।" सेठानी ने उत्तर दिया-"जो तुम चाहो, वह मुझे दो।" स्वार्थी मित्र को जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गई। उसने कुछ ही दिनों में सारा पैसा वसूल कर लिया। सारे धन के उसने दो भाग किए-एक बहुत है अधिक और दूसरा बहुत कम। कम वाला भाग उसने सेठानी को दिया। सेठानी ने लेना स्वीकार नहीं किया और विवाद लेकर न्यायाधीश के पास पहुंची। * श्री नन्दीसूत्र ( २१४ ) Shri Nandisutra %% %%%%%%%%%%%步步步步步步步步步岁岁岁男%%%%% H$ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$ 355555555551) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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