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________________ FILE LIE LIE LIE LE LE LE LE LE LE LE LE श्री श्री जगनारारारारा न्यायाधीश से सेठानी ने सारी बात बताई और कहा कि यह व्यक्ति अपने वायदे से मुकर रहा है। न्यायाधीश ने सारा धन वहाँ मँगाया और उस व्यक्ति की इच्छानुसार दो ढेरों में बॉट दिया। और उस व्यक्ति से पूछा - "तुम कौन-सा ढेर लेना चाहते हो ।” उसने बड़े ढेर को दिखाते हुए कहा - " मैं तो यही ढेर लेना चाहता हूँ।” न्यायाधीश ने उसे समझाया - " बस इसी कारण यह ढेर तुम दोनों के बीच हुए अनुबंध के अनुसार सेठानी को दिया जाएगा क्योंकि जिस शर्त पर तुमने यह काम किया है वह स्पष्ट है - " जो तुम चाहो वह इसे दो ।" 5595555 565 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 554655 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 सेठ का मित्र अपनी मूर्खता पर पछताता हुआ छोटा ढेर लेकर चला गया। सेठानी अपना धन लेकर अपने घर लौट गई। १०. शत सहस्र (एक लाख) - एक परिव्राजक बडा कुशाग्र बुद्धि था। वह जो बात एक बार सुन लेता था उसे अक्षरशः याद हो जाती थी । उसके पास चाँदी का एक बहुत बड़ा पात्र था जिसे वह खोटक कहता था । अपनी इस स्मृति - क्षमता के अभिमान में चूर एक दिन उसने अनेक उपस्थित लोगों के समक्ष प्रतिज्ञा की - " जो व्यक्ति मुझे ऐसी अश्रुत पूर्व बात सुनाएगा कि जो मैंने पूर्व में कभी न सुनी हो, उसे मैं अपना यह विशाल रजत खोटक दे दूँगा ।" उसकी इस प्रतिज्ञा के समाचार सुन एक-एक कर अनेक व्यक्ति आए और उसे अनेक बातें कहीं। पर वह बात सुनकर अक्षरशः उसे दोहरा देता और कहता कि यह तो मैंने पहले ही सुनी हुई है। परिव्राजक की यह चतुराई एक सिद्ध - पुत्र समझ गया। उसने मन में ठान ली कि वह परिव्राजक को उसी के जाल में फँसाकर सबक सिखायेगा। परिव्राजक की प्रसिद्धि और अनेक लोगों को उसे बात सुनाने आने का प्रसंग इतना रोचक हो चुका था कि अब यह प्रतियोगिता राजदरबार में होने लगी थी । सिद्ध-पुत्र एक दिन अवसर देख राजदरबार में पहुँचा और कहा कि वह उसे ऐसी बात बताएगा जो उसने पहले नहीं सुनी है। परिव्राजक मुस्कराकर बोला" अवश्य ! तुम भी अपना कौशल दिखाओ ।” सिद्ध-पुत्र ने ऊँचे स्वर में कहा जिससे राजा सहित सभी दरबारी सुन सकें "तुज्झ पिया मह पिउणो, धारेइ अणूणगं सय सहस्सं । जइ सुपुव्वं दिज्जह, अह न सुयं खोरयं देसु ॥” अर्थात् “तुम्हारे पिता को मेरे पिता के एक लाख रुपये देने हैं। यदि यह बात तुमने सुनी है तो अपने पिता का एक लाख रुपये का कर्जा चुका और यदि नहीं सुनी है तो खोटक मुझे दे दो ।" परिव्राजक यह श्लोक सुनकर ठगा-सा रह गया। अपने ही जाल में स्वयं फँस गया। उसे अपनी पराजय स्वीकार कर चाँदी का पात्र देना पड़ा। 6. Chetak Nidhan-Two close friends once went out of the town into a jungle for some work. While they were digging a hole at a spot मतिज्ञान ( औत्पत्तिकी बुद्धि ) ( २१५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only @ Mati-jnana (Autpattihi Buddhi) क 50 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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