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________________ फO MEENESS555555555555555510 सरल मित्र ने कहा-“क्या बताऊँ मित्र ! ये बंदर तुम्हें क्यों नहीं पहचानेंगे? ये तो तुम्हारे । + पुत्र ही हैं। दुर्भाग्यवश बन्दर बन गए हैं।" कपटी को काटो तो खून नहीं। वह सामने से झट से उठा और अपने मित्र का हाथ पकडकर आवेश भरे स्वर में बोला-"मित्र ! यह कैसा क्रूर मजाक कर रहे हो? कहीं आदमी के भी बन्दर बनते हैं।" “मित्र ! दुर्भाग्य तथा कर्मफल क्या नहीं कर सकते। जब दुर्भाग्यवश सोना कोयले में बदल ॐ सकता है तो आदमी बन्दर क्यों नहीं बन सकता। अवश्य ही आपके अशुभ कर्मों का फल है।'' सारी बात कपटी मित्र के समझ में आ गई। उसने सोचा, यदि झगडा करेगा तो बात राज ॐ तक पहुँचेगी। धन भी छिन जाएगा और लाभ भी नहीं मिलेगा। उसे सबक मिल गया। उसने ॥ तत्काल सारी बात बताई और क्षमा मांगकर धन का बॅटबारा कर लिया। सरल मित्र ने उसके । दोनों पुत्र उसे वापस दे दिये। औत्पत्तिक बुद्धि का यह एक और सुन्दर उदाहरण है। ७. शिक्षा (धनुर्विद्या)--एक बार एक धनुर्विद्या-विशेषज्ञ भ्रमण करते हुए एक नगर में पहुंचा। - ॐ वहाँ जब लोगों को उसकी योग्यता का पता लगा तो अनेक धनाढ्यों के पुत्र उसके पास जाकर 卐 धनुर्विद्या सीखने लगे। विद्या सीखने के बाद उसके इन धनी शिष्यों ने दक्षिणा. के रूप में उसे प्रचुर धन भेंट किया। जब लड़कों के अभिभावकों को यह समाचार मिला तो वे बिगड गए और ॐ सबने मिलकर निश्चय किया कि जब वह व्यक्ति इतना धन लेकर अपने घर को प्रस्थान करेगा तब रास्ते में उसे मार-पीटकर धन वापस ले लिया जायेगा। इस दुरभिसन्धि का किसी प्रकार धनुर्विद्या-विशेषज्ञ को पता चल गया। उसने अपने ग्राम में में रहने वाले बंधुओं को चुपचाप यह समाचार भेज दिया कि आगामी पूर्णिमा के दिन वह नदी में गोबर के पिण्ड बहाएगा जो बहते हुए कुछ समय बाद उसके गाँव के निकट पहुँच जायेंगे। उन्हें ॐ नदी में से निकालकर सँभालकर रख दिया जाए। और फिर उसने दक्षिणा में मिला सारा धन गीली गोबर में डाल बहुत से पिण्ड बना लिये और उन्हें सुखा लिया। ____ उचित अवसर देख उसने अपने सब शिष्यों को बुलाकर कहा-"हमारे कुल की परम्परा है कि जब शिष्यों की शिक्षा पूर्ण हो जाए तो एक शुभ तिथि को नदी पर स्नान कर मंत्रोच्चार के ज सहित गोबर के सूखे पिण्ड नदी में प्रवाहित किए जाते हैं। इसका यह महत्त्व है कि गोबर समान है अज्ञान को प्रवाहित किया जा रहा है। तुम लोगों की शिक्षा पूर्ण हो चुकी है अतः यह दीक्षान्त समारोह आगामी पूर्णिमा को किया जाएगा।' पूर्णिमा के दिन संध्या समय आयोजन किया गया और अनेक नगरवासियों की उपस्थिति में मंत्रोच्चार सहित सभी गोबर के पिण्ड नदी में प्रवाहित कर दिये गये। योजनानुसार ये पिण्ड जब बहकर उस शिक्षक के गांव पहुंचे तो उसके बन्धुओं ने नदी से चुनकर एक गठरी में बाँध सँभालकर रख दिये। F मतिज्ञान (औत्पत्तिकी बुद्धि) (२१३ ) Mati-jnana (Autpattiki Buddhi) $55555555555555555555555牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙 听听听听听听折听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听55听听听听听听听听F5555 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFF Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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