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EEEEE ६. चेटक निधान-दो घनिष्ट मित्र एक बार नगर से बाहर जंगल में किसी कार्यवश गये। जंगल में एक स्थान पर वे गड्ढा खोद रहे थे कि अचानक उन्हें बहुत-सा गडा हुआ खजाना E (निधान) मिला। इतना सोना देखकर दोनों मित्र बहुत प्रसन्न हुए। उसमें से एक वोला-“मित्र ! ॐ हम बड़े भाग्यवान हैं कि हमें अकस्मात् ही इतना बडा निधान मिल गया। किन्तु इसे हम आज
नहीं कल अपने घर ले चलेंगे क्योंकि कल बड़ी शुभ तिथि है।" यह व्यक्ति बड़ा कपटी था और E- दूसरा सरल चित्त। वह बातों में आ गया और दोनों अपने-अपने घरों को लौट गये। कपटी मित्र 卐 रात को जंगल में पहुंचा और सारा धन निकाल उसके स्थान पर कोयला भर रख गया। E अगले दिन नियत समय पर दोनों मित्र वहाँ पहुँचे और खुदाई की। वहाँ धन के स्थान पर के कोयले देख कपटी रोने लगा। बीच-बीच में वह कनखियों में अपने मित्र की ओर देखता जाता है
और कहता जाता-"हम कितने भाग्यहीन हैं कि भाग्य ने हमारा धन छीनकर कोयले दे दिये।" ॐ दूसरा मित्र सरल अवश्य था किन्तु मूर्ख नहीं। वह समझ गया कि उसके मित्र ने ही यह धूर्तता ज की है। उसने उसी समय निश्चय कर लिया कि इस धूर्त को सबक सिखाना है और तब अपने
मित्र को सान्त्वना देते हुए बोला-“इतना दुःख मत करो मित्र ! जैसा भाग्य में होता है वही होता 9 है। चलो घर लौटें।" और दोनों मित्र लौट आए। - सरल चित्त मित्र ने घर आकर एक अच्छे कलाकार से अपने धूर्त मित्र की बैठी हुई प्रतिमा ॐ बनवाई। मूर्ति को एक कमरे में रख उसने दो बन्दर पाल लिये। बंदरों को खाने को जो कुछ भी
देता वह उस मूर्ति के कंधों पर, सिर पर या जंघाओं पर रख देता। बंदर उछलते-कूदते उसके
प्रतिमा पर चढते और अपना भोजन कर लेते। कुछ ही दिनों में वे उस मूर्ति से इतने परिचित हो ॐ गए कि जब भी उन्हें कुछ खाना होता तो मूर्ति की गोद में और कंधों पर चढकर खेलने लगते
और सरल मित्र उन्हें फट से भोजन दे देता। है जब उस मित्र को यह विश्वास हो गया कि अब वे बन्दर जो वह चाहता था वह काम सीख
गए हैं तो उसने एक दिन अपने कपटी मित्र के दोनों लड़कों को अपने यहाँ भोजन पर आमंत्रित किया। कपटी मित्र ने प्रसन्नतापूर्वक अपने दोनों पुत्रों को भेज दिया। सरल मित्र ने बच्चों को बडे + स्नेह से भोजन कराया और एक अन्य स्थान पर ढेर से खिलौने देकर छुपा दिया। ॐ संध्या समय जब कपटी मित्र अपने बच्चों को लेने आया तब तक सरल मित्र ने वह प्रतिमा :
हटवाकर उसके स्थान पर एक आसन बिछा दिया था। कपटी मित्र को उसी आसन पर बैठने को
कहा और कुछ भोजन सामग्री लाकर उसके सामने रख दी। कपटी बैठा ही था कि दूसरे कमरे 9 में से दो बन्दर आए और कपटी की गोद में कंधों पर चढ़कर खेलने लगे। ऐसा लगता था जैसे + वे कपटी को भलीभाँति पहचानते थे। सरल चित्त मित्र उदास भाव से उन्हें खाने की चीजें ॐ देने लगा। + कपटी ने आश्चर्यपूर्वक पूछा-"मित्र ! क्या बात है ये दोनों बंदर तो मेरे पास ऐसे आकर ॐ खेल-खा रहे हैं जैसे मुझसे परिचित हों।" श्री नन्दीसूत्र
( २१२ )
Shri Nandisutra 05555555555555550
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