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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र /
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ruminated over the dream and pondered what it augured. With the help of his inborn intelligence and discerning mind, he interpreted the dream and what it forebode. He then conveyed sweetly to Queen Dharini,
श्रेणिक द्वारा स्वप्नफल-कथन
सूत्र १६. उराले णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिखे, कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए । सुमिणे दिवे, सिवे धन्ने मंगल्ले-सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिवे, आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्ल-कारए णं तुमे देवी सुमिणे दिढे। अत्थलाभो ते देवाणुप्पिए, पुत्तलाभो ते देवाणुप्पिए रज्जलाभो भोगलाभो सोक्खलाभो ते देवाणुप्पिए ! ___ एवं खलु तुम देवाणुप्पिए नवण्हं मासाणं बहुपडिपुत्राणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्वंताणं अम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडिंसयं कुलतिलकं कुलकित्तिकर, कुलवित्तिकर, कुलणंदिकर, कुलजसकरं, कुलाधारं कुलपायवं कुलविवद्धणकरं । सुकुमालपाणिपायं जाव दारयं पयाहिसि।
से वि य णं दारए उम्मक्कबालभावे विनायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते सरे वीरे विक्कंते वित्थिन्नविपुलबलवाहणे रज्जवती राया भविस्सइ। तं उराले णं तुमे देवीए सुमणे । दिढे जाव आरोग्गतुट्टिदीहाउ-कल्लाणकारए णं तुमे देवी ! सुमिणे दिढे त्ति कटु भुज्जो । भुज्जो अणुबूहेइ। ___ सूत्र १६. “हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार, श्रेष्ठ व कल्याणकारी स्वप्न देखा है। हे। देवानुप्रिये ! तुमने शिव-सुखदायक, मंगल रूपादि गुणों वाला स्वप्न देखा है। जिसके ! फलस्वरूप अर्थ, भोग, पुत्र, सुख व राज्य लाभ होगा। निश्चित ही तुम नौ महीने और साढ़े । सात दिन पूरे होने पर एक पुत्र रत्न को जन्म दोगी। तुम्हारा यह पुत्र हमारे कुल के लिए। ध्वजा, दीपक, पर्वत, भूषण, तिलक आदि के समान कीर्ति बढ़ाने वाला होगा। वह कुल का | सूर्य, आधार व पादप-वृक्ष होगा। वह कुल का निर्वाह करने वाला, यश बढ़ाने वाला, और विशेष वृद्धि करने वाला होगा। वह सुकोमल हाथ-पैर वाला, किसी भी प्रकार की हीनता से। रहित सम्पूर्ण पंचेन्द्रिय शरीर वाला होगा। उसका शरीर मान, उन्मान और परिमाण से पूर्ण । व सर्वांग सुन्दर होगा! वह शुभ लक्षण, व्यंजन आदि गुणों से युक्त होगा। वह शोभावान, ! चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाला, कान्त, मनोज्ञ और प्रियदर्शी होगा। __“वह बचपन बीतने पर कला, विज्ञान आदि सभी विषयों में पारंगत होकर यौवन प्राप्त ! करेगा। तब वह शूरवीर, तेजस्वी, विशाल, बलशाली, तथा वाहन, सेना, राज्य आदि का
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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