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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात शयनागार - वर्णन सूत्र १३ : तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि छक्कट्ठकलट्ठे-मट्ठ-संठिय-खंभुग्गयं पवरवरसालभंजिय-उज्जलमणिकणगरयण - थूभियविडंगजालद्धचंद-णिज्जूहकंतर- कणयालि-चंदसालिया - विभत्तिकलिए, वण्णरइए, बाहिरओ दूमियघट्टमट्ठे, अब्भितरओ पसत्त-सुइलिहियचित्त-कम्मे, णाणाविहपंचवण्ण-मणि-रयणकोट्टिमतले, पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ सरसच्छधाऊवल GRETC OMO उल्लोयचित्तियतले, चंदणवर- कणगकलस- - सुविणिम्मिय-पडिपुंजिय- सरसपउमसोहंतदारभाए, पयरग्गालंबंतमणि-मुत्तदाम-सुविरइयदारसोहे, सुगंध-वरकुसुम-मउयपम्हलसयणोवयारे, मणहिययनिव्वुइकरे, कप्पूर- लवंग-मलय- चंदण - कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूवडज्झंतसुरभिमघमघंत गंधुद्धयाभिरामे, सुगंधवर - गंधिए गंध-वट्टिभूए, मणिकिरणपणासियंधयारे, किं बहुणा ? जुइगुणेहिं सुरवरविमाण-वेलंबियवरघरए, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि, सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे, दुहओ उन्नए, मज्झेण य गंभीरे, गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए, ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छिन्ने, अत्थरय-मलय-नवतय-कुसत्त-लिंब - सीहकेसरपच्चुत्थए, सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए, सुरम्मे, आइणग- रूय- बूर - णवणीय-तुल्लफासे; पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्त - जागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी एगं महं सत्तुस्सेहं - रययकूडसन्निहं, नहयलंसि सोमं सोमाकारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमइगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा । सूत्र १३ : धारिणी देवी एक अत्यन्त मनोहारी महल में रहती थी। उस महल में स्थिरता और विशालता के लिये उचित स्थान पर उचित रीति से छः-छः काष्ठ खंडों से विशिष्ट आकार के सुन्दर खंभे बने हुए थे। इन घिसकर चिकने किये खंभों पर जीवन्त लगती सुन्दर पुतलियाँ उकेरी हुई थीं। इस महल पर चमकती मणिरत्नों की तथा सोने की छोटी-छोटी छतरियाँ बनी हुई थीं। सुन्दर छज्जे, मनोहारी जाली- झरोखे, अर्द्धचन्द्राकार सीढ़ियाँ और रत्नजड़ित द्वार - घोडले उस महल की शोभा बढ़ा रहे थे। स्थान-स्थान पर सुन्दर आकार की नालियाँ बनी थीं। भवन के ऊपरी भाग में चन्द्रशाला बनी हुई थी । भवन के शयन कक्ष में चूने और स्वच्छ गेरू का रंग किया हुआ था। बाहर से सफेदी की हुई थी और चिकने पत्थर से घिसाई होने के कारण वह चमक रहा था। शयनागार की भीतरी दीवारों पर पशु, पक्षी, मनुष्य आदि के सुन्दर मनोहारी चित्र बने हुए थे । आगार के आँगन में पंचरंगे मणिरत्न जड़े हुए थे और छत की दीवार पर कमल के आकार की, फूलों से भरी, मालती आदि की बेलों के चित्र बने हुए थे। द्वार भाग पर सोने के मांगलिक कलश रखे थे जिनके मुख खिले हुए कमल से ढँके थे। दरवाजे पर सोने के तार में पिरोई मणियों ( १५ ) _CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA Jain Education International For Private Personal Use Only (15) www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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