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पंचम अध्ययन शैलक
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सूत्र ४0. तत्पश्चात् शुक परिव्राजक अपने एक हजार शिष्यों के समूह तथा सुदर्शन सेठ के साथ थावच्चापुत्र के पास आया और उनसे कहा-"भन्ते ! यह आपकी यात्रा है, यापनीय है, अव्याबांध है, अथवा प्रासुक विहार हो रहा है ?
थावच्चापुत्र ने उत्तर दिया-“हे शुक ! मेरी यात्रा भी हो रही है, यापनीय भी है, अव्याबाध भी और प्रासुक विहार भी।"
DIALOGUE BETWEEN SHUK AND THAVACCHAPUTRA ___40. After this, Shuk Parivrajak, along with his one thousand disciples and merchant Sudarshan, came to Thavacchaputra and said, “Bhante! You are in a state of movement (Yatra), ritual practices (Yapaniya), undisturbed suspension (Avyabadh), or rootless roving (Prasuk Vihar) ?"
Thavacchaputra replied, "Shuk! I am in all these four states at the same time."
सूत्र ४१. तए णं से सुए थावच्चापुत्तं एवं वयासी-"किं भंते ! जत्ता ?"
“सुया ! जं णं मम णाण-दसण-चरित्त-तव-संजममाइएहिं जोएहिं जयणा से तं जत्ता।" ___ “से किं तं भंते ! जवणिज्जे ?" ___ “सुया ! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य।"
“से किं तं इंदियजवणिज्जे ?"
“सुया ! जं णं मम सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियाई निरुवहयाइं वसे वटुंति, से तं इंदियजवणिज्ज।"
"से किं तं नोइंदियजवणिज्जे ?"
“सुया ! जन्नं कोह-माण-माया-लोभा खीणा, उवसंता, नो उदयंति, से तं नोइंदियजवणिज्जे।"
सूत्र ४१. शुक-"भंते ! आपकी यात्रा क्या है ?"
थावच्यापुत्र-“हे शुक ! ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम आदि से सभी प्रवृत्तियों में यतना का पालन करना हमारी यात्रा है।"
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CHAPTER-5: SHAILAK
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