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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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करते हुए यहाँ आये हैं और नीलाशोक नामक उद्यान में ठहरे हैं। मैंने उन्हीं के पास विनयमूल धर्म स्वीकार किया है।"
38. Sudarshan got up from his seat and joining his palms replied, “Beloved of gods! An itinerant ascetic Thavacchaputra, a disciple of Arhat Arishtanemi, has come to the town and is staying at the Nilashok garden. I have been initiated into the discipline based religion by him."
सूत्र ३९. तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं एवं वयासी-"तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामो। इमाइं च णं एयारूवाई अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाई पुच्छामो। तं जइ णं मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरइ, तए णं अहं वंदामि नमसामि। अह मे से इमाइं अट्ठाइं जाव नो वागरेइ, तए णं अहं एएहिं चेव अटेहिं हेऊहिं निप्पट्ठपसिणवागरणं करिस्सामि।" __सूत्र ३९. शुक परिव्राजक ने कहा-“हे सुदर्शन ! चलो हम तुम्हारे धर्माचार्य थावच्चापुत्र के पास चलें और उनसे अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण तथा व्याकरण-देशना का समाधान प्राप्त करें। यदि वे समाधान कर देंगे तो मैं उन्हें वंदनादि करूँगा और यदि वे समाधान नहीं दे पाये तो मैं इन्हीं अर्थ आदि से उन्हें निरुत्तर कर दूंगा।"
39. Shuk Parivrajak said, “Sudarshan! come, let us go to your preceptor, Thavacchaputra and seek his explanations on some topics with reference to meaning, cause, question, reason and grammar. If he is able to explain I shall become his follower and bow before him but if he fails to explain I shall strike him dumb by my arguments on the same parameters." शुक-थावच्चापुत्र संवाद ___ सूत्र ४0. तए णं से सुए परिव्वायगसहस्सेणं सुदंसणेण य सेट्टिणा सद्धिं जेणेव नीलासोए उज्जाणे, जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी-“जत्ता ते भंते ! जवणिज्जं ते ? अव्वाबाहं पि ते ? फासुयं विहारं ते ?"
तए णं से थावच्चापुत्ते सुए णं परिव्वायगेणं एवं वुत्ते समाणे सुयं परिव्वायगं एवं वयासी-“सुया ! जत्ता वि मे, जवणिज्ज पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे।"
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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