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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
तीन बार प्रदक्षिणा कर उन्होंने वाणी से स्तुति और शरीर झुकाकर वन्दना की। फिर वे आर्य सुधर्मा स्थविर से न बहुत दूर न बहुत पास उचित स्थान पर उनके सम्मुख बैठ गये और उत्तर की अपेक्षा लिये दोनों हाथ जोड़ विनय एवं भक्तिपूर्वक बोले
" हे भंते ! श्रमण भगवान महावीर ने, जो धर्म के आदि पुरुष तीर्थंकर थे, ( शक्रेन्द्र स्तुति के समान गुण वर्णन) और सिद्ध गति रूप शाश्वत स्थान को प्राप्त हो चुके हैं, पाँचवें अंग का आपके कथनानुसार अर्थ बताया है तो छठे अंग, ज्ञाताधर्मकथा, का क्या अर्थ बताया है ?"
( ११ )
CURIOSITY OF JAMBU SWAMI
5. A curiosity sparked in the mind of ascetic Arya Jambu and it slowly grew into a doubt and then a query. He got up and approached Sudharma Swami. He circum-ambulated Sudharma Swami three times clockwise, uttered a panegyric, and bowed before him. He sat down near Sudharma Swami and joining his palms humbly and respectfully put forth his question
"Bhante! If according to you this is the text of the fifth Anga (Jain canon) as given by Shraman Bhagavan Mahavir, the Tirthankar and propagator of religion (as detailed in the panegyric by Shakrendra, the king of gods) who has attained the eternal abode of the Siddha-state, what is the text and meaning of the sixth Anga, Jnata Dharma Katha, as given by him?”
सुधर्मा स्वामी का समाधान
सूत्र ६ : जंबुत्ति, तए णं अज्जसुहम्मे तेरे अज्जजंबूणामं अणगारं एवं वयासी- एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्टस्स अंगस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा - १. णायाणि य २. धम्मकहाओ य
सूत्र ६ : आर्य सुधर्मा ने आर्य जम्बू को उत्तर दिया- “हे जम्बू ! उन श्रमण भगवान महावीर ने छठे अंग के दो श्रुतस्कन्धों का उपदेश दिया है । वे १. ज्ञात और २. धर्मकथा नाम से प्रसिद्ध हैं । "
REPLY BY SUDHARMA SWAMI
6. Sudharma Swami replied, “O Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir has preached the sixth Anga in two parts that are popularly known as - 1. Jnata and 2. Dharma Katha."
CHAPTER - 1 : UTKSHIPTA JNATA
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