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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ४ : तेणं कालेणं तेणं समए णं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स जेटे अंतेवासी अज्जजंबूणामं अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव....... अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाण-कोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। __सूत्र ४ : उस समय आर्य सुधर्मा अनगार के प्रधान शिष्य थे काश्यप गोत्र के आर्य जम्बू अनगार। वे सात हाथ ऊँचे और पूर्वोक्त (कनक समान गौरवर्ण वाले तपस्वी, ब्रह्मचर्य में लीन आदि) गुणों से संपन्न थे। वे आर्य सुधर्मा से न अधिक दूर न अधिक पास रहते थे। वे उचित स्थान पर, घुटना ऊपर और मस्तक नीचा किये ध्यान के उपयुक्त आसन में बैठ तप और संयम में सतत लीन रहते थे।
4. Arya Jambu of the Kashyap clan was the senior disciple of Sudharma Swami. He was seven feet tall and had all the virtues detailed above. He always remained in proximity of Sudharma Swami, neither very far nor very near. All the time he used to sit at a proper place in a proper posture suitable for meditation, with raised knee and bent head, absorbed in practices of discipline and penance. जम्बू स्वामी की जिज्ञासा __ सूत्र ५ : तए णं से अज्जजंबूणामे अणगारे जायसड्ढे, जायसंसए, जायकोउहल्ले, संजातसड्ढे, संजातसंसए, संजातकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे, उप्पन्नसंसए, उप्पन्नकोउहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे, समुप्पन्नसंसए, समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उडेति। उट्ठाए उद्वित्ता जेणामेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ। करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता अज्जसुहम्मस्स थेरस्स णच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहं पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी
जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं, आइगरेणं, तित्थयरेणं, जाव सासय ठाणमुवगए णं, पंचमस्स अंगस्स अयमढे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अंगस्स णायाधम्मकहाणं के अटे पण्णत्ते ?
सूत्र ५ : आर्य जम्बू अनगार के मन में एक कुतूहल उत्पन्न हुआ जो क्रमशः गहरा होते-होते संशय में परिणत हो गया और फिर जिज्ञासा बन गया। वे उठ खड़े हुए और आर्य सुधर्मा स्थविर के निकट आये। आर्य सुधर्मा स्थविर की दक्षिण दिशा से आरम्भ कर
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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