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धर
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केसरिहत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसह तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहंसि भंडगनिक्खेवं करे, करित्ता संखसमए णं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
सूत्र २८. उसी समय में शुक नाम का एक परिव्राजक था। वह ऋक् आदि चारों वेद और षष्ठितंत्र का पारंगत था । सांख्य दर्शन के अर्थ का ज्ञाता था । पाँच यम और पाँच नियम का पालन करता था और शौच मूलक दस प्रकार के परिव्राजक धर्म, दान धर्म, शौच धर्म और तीर्थाभिषेक का उपदेश देता और प्रचार करता था। वह त्रिदंड, कमंडल, छत्र, छन्नालिका (काठ का एक उपकरण), अंकुश, ताँबे की अंगूठी और चीवर - ये सात उपकरण धारण करता था। यह शुक परिव्राजक अपने एक हजार शिष्य परिव्राजकों के साथ सौगंधिका नगरी के एक मठ में आकर ठहरा और अपने उपकरण रखे। वहाँ वह सांख्य मतानुसार साधना करता हुआ रहने लगा।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
SHUK PARIVRAJAK
28. During the same period there was a Parivrajak (a specific class of monks) named Shuk. He was an accomplished scholar of all the four Vedas and the Shashtitantra. He followed the discipline of five Yamas and five Niyams. He propagated the ten cleansing based tenets of the Parivrajak sect and preached for indulgence in charity, cleansing, and annointing of/at places of pilgrimage. He used to carry seven accouterments prescribed for a Parivrajak, namely a trident, a Kamandal (a vessel made of gourd shell), an umbrella, Chhannalika (a wooden instrument ), an Ankush (a lancet ), a copper ring, and a piece of cloth. This Shuk Parivrajak arrived in the town of Saugandhika with one thousand of his Parivrajak disciples and stayed in a Math (a specific type of religious abode). There he started his practices based on the Sankhya ideals.
सूत्र २९. तए णं सोगंधियाए सिंघाडग-तिग- चउक्क चच्चर चउम्मुह - महापह- पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ - एवं खलु सुए परिव्वायए इह हव्वमागए जाव विहरइ । परिसा निग्गया । सुदंसणो निग्गए ।
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सूत्र २९. सौगंधिका नगरी के श्रृंगाटक आदि सर्व स्थानों पर लोगों के झुण्ड एकत्र हो उसके आने और ठहरने की चर्चा करने लगे। नागरिकों की परिषद निकलकर मठ में पहुँची। वहीं सुदर्शन सेठ भी आया ।
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JNÄTÄ DHARMA KATHANGA SUTRA
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