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पंचम अध्ययन : शैलक
( २४९ )
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सूत्र २६. उनका उपदेश सुन राजा शैलक ने कहा-“हे देवानुप्रिय ! जैसे आपके पास अनेक उग्रादि कुलों के पुरुषों ने अपना वैभव त्यागकर दीक्षा ग्रहण की है, वैसा करने में तो मैं समर्थ नहीं हूँ। किन्तु मैं आपसे अणुव्रतादि को धारणकर श्रमणोपासक बनना चाहता हूँ।" और वह राजा जीव-अजीव आदि का ज्ञाता हो संयम से आत्मा को भावित करता जीवन बिताने लगा। फिर पंथक आदि पाँच सौ मंत्री भी श्रावक बन गये। थावच्चापुत्र अणगार वहाँ से विहार कर अन्य जनपदों में घूमने लगे।
26. After hearing the sermons the king said, “Beloved of gods! Many persons from higher classes (like Ugra, etc. ) have abandoned wealth and grandeur and taken Diksha from you, but I don't find myself fit for that. However, I wish to take minor vows under your guidance and become a follower of the Shramans." And the king took the vows after knowing the fundamentals like soul and matter and started leading a disciplined life. After this, Panthak and other ministers also became Shravaks (followers of Shramans). Ascetic Thavacchaputra resumed his itinerant way. __ सूत्र २७. तेणं कालेणं तेणं समए णं सोगंधिया नामं नयरी होत्था, वण्णओ। नीलासोए उज्जाणे, वण्णओ। तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नगरसेट्टी परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए।
सूत्र २७. काल के उस भाग में सौगंधिका नाम की नगरी का वर्णन मिलता है (औपपातिक सूत्र)। उस नगरी के बाहर नीलाशोक नाम के उद्यान का भी वर्णन है। सौगंधिका नगरी में सुदर्शन नाम का नगरसेठ रहता था। वह समृद्धिवान (आदि) और समादृत था।
27. During that period of time there was a town named Saugandhika (Aupapatik Sutra). There is also a mention of a garden named Nilashok outside this town. In this town lived a merchant named Sudarshan. He was wealthy (etc.) as well as respected.
शुक परिव्राजक
सूत्र २८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नाम परिव्वायए होत्था-रिउव्वेय-जजुब्वेय सामवेय-अथव्वणवेय-सद्वितंतकुसले, संखसमए लद्धटे, पंचजम-पंचनियमजुतं सोयमूलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्मं दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-वत्थ-पवर-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्त-छन्नालियंकुस-पवित्तय
RADE
LAH
CHAPTER-5 : SHAILAK
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