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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
MAIDABAD
PARDAMOSHRADEMARAwtarnamainam
elaborate and harsh rules of ascetic discipline prescribed by Arhat Arishtanemi and accepted by them. राजा शैलक का श्रावक बनना
सूत्र २५. तेणं कालेणं तेणं समए णं सेलगपुरे नाम नयरे होत्था, सुभूमिभागे उज्जाणे, सेलए राया, पउमावई देवी, मंडुए कुमारे जुवराया। ___ तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था, उप्पत्तियाए वेणइयाए पारिणामियाए कम्मियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेया रज्जुधुरचिंतया वि होत्था।
थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया णिग्गते। धम्मकहा।
सूत्र २५. काल के उस भाग में शैलकपुर नाम का एक नगर था जिसके बाहर सुभूमिभाग नाम का एक उद्यान था। उस नगर के राजा का नाम शैलक, रानी का नाम पद्मावती और युवराज का नाम मंडुक था।
शैलक राजा के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री थे जो औत्पत्तिक आदि चारों प्रकार की बुद्धि से सम्पन्न थे और राज्य का संचालन करते थे।
थावच्चापुत्र अनगार अपने शिष्यों सहित इसी शैलकपुर में पधारे। वन्दना करने आये राजा को उन्होंने धर्मोपदेश दिया। KING SHAILAK BECOMES A FOLLOWER
25. During that period of time there was a town named Shailakpur. Outside this town there was a garden named Subhumi. The names of the king, queen and the prince of this town were Shailak, Padmavati, and Manduk respectively.
King Shailak had five hundred ministers lead by Panthak. They were endowed with four types of wisdom and ruled the kingdom ably.
Thavacchaputra and his disciples arrived at Shailakpur. When the king came to pay his respects to the ascetic he listened to Thavacchaputra's sermons.
सूत्र २६. धम्म सोच्चा “जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइया, तहा णं अहं नो संचाएमि पव्वइत्तए। तओ णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइय जाव समणोवासए, जाव अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया समणोवासया जाया। थावच्चापुत्ते बहिया जणवयविहारं विहरइ।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA
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