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पंचम अध्ययन शैलक
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अष्टभक्तादि अनेक तप करते हुए विचरने लगे। फिर अर्हत् अरिष्टनेमि ने उन्हें उनके साथ दीक्षित होने वाले इभ्यादि एक हजार श्रमण शिष्य-रूप में प्रदान किये।
22. Under the tutelage of the senior ascetic disciples of Arhat Arishtanemi, Thavacchaputra studied all the subjects beginning from Samayik and concluding with the fourteen Purvas (sublime canons). He started doing various penances including fasts and followed the ascetic way of life. Later Arhat Arishtanemi gave him charge of the one thousand ascetics who were initiated with him.
थावच्चापुत्र का विहार ___ सूत्र २३. तए णं से थावच्चापुत्ते अन्नया कयाई अरहं अरिट्ठनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरित्तए।"
"अहासुहं देवाणुप्पिया !'
सूत्र २३. एक बार थावच्चापुत्र ने अर्हत् अरिष्टनेमि को यथाविधि वन्दना करके कहा"भन्ते ! यदि आप आज्ञा दें तो मैं अपने एक हजार अनगार शिष्यों के साथ जनपदों में विहार करना चाहता हूँ।" __भगवान ने कहा-“जिसमें तुम्हें सुख लगे वह करो देवानुप्रिय !" WANDERINGS OF THAVACCHAPUTRA
23. One day, after formal greetings, Thavacchaputra requested Arhat Arishtanemi, “Bhante! If you grant permission, I would like to wander around various populated areas with my one thousand disciples."
“You may do as you please, O Beloved of gods!" consented the Lord.
सूत्र २४. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं बहिया जणवयविहार विहरइ। ___ सूत्र २४. अनुमति प्राप्त कर थावच्चापुत्र अपने शिष्यों सहित उदार, उग्र, अर्हत् द्वारा प्रदत्त और स्वयं द्वारा ग्रहण किये श्रमण नियमों का पालन करते हुए विभिन्न जनपदों में विचरने लगे। ___24. After getting the permission Thavacchaputra and his one thousand disciples commenced the itinerant way of life following the
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CHAPTER-5 : SHAILAK
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