________________
पंचम अध्ययन शैलक
29. In every nook and corner of the town throngs of people collected and started gossiping about the arrival and stay of this Parivrajak. A delegation of citizens went to visit the religious man in the Math. Sudarshan Seth was also among them.
शुक की धर्मदेशना
सूत्र ३०. तए णं से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अन्नेसिं च बहूणं संखाणं परिकs - एवं खलु सुदंसणा ! अम्हं सोयमूलए धम्मे पन्नत्ते । से वि य सोए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वसोए य भावसोए य। दव्वसोए य उदए णं मट्टियाए य। भावसोए दहि य मंतेहि य । जं णं अम्हं देवाणुप्पिया ! किंचि असुई भवइ, तं सव्व सज्जो पुढवीए आलिप्पइ, तओ पच्छा सुद्धेण वारिणा पक्खालिज्जइ, तओ तं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेयपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति ।
तए णं से सुदंसणे सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा हट्टे सुयस्स अंतियं सोयमूलयं धम्मं गेण्हइ, गेण्हित्ता परिव्वायए विपुलेण असण- पाणखाइम- साइम-वत्थेणं पडिलाभेमाणे जाव विहरइ |
( २५१ )
तए णं से सुए परिव्वायए सोगंधियाओ नयरीओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
सूत्र ३०. शुक परिव्राजक ने सुदर्शन सहित उस परिषद को सांख्य मत का उपदेश दिया - " हे सुदर्शन ! हमारा धर्म शौच मूलक धर्म कहा गया है। यह शौच दो प्रकार का बताया गया है - द्रव्य शौच और भाव शौच । द्रव्य शौच जल और मिट्टी से होता है तथा भाव - शौच दर्भ (घास/नारियल) और मंत्र से होता है। हे देवानुप्रिय ! हमारे मतानुसार हमारी जो भी वस्तु अपवित्र हो जाती है उसे पहले मिट्टी से माँज दिया जाता है और फिर शुद्ध जल से धो लिया जाता है। इससे वह अपवित्र वस्तु पवित्र हो जाती है। इसी प्रकार प्राणी भी जलाभिषेक से, जल स्नान से आत्मा को पवित्र कर निर्विघ्न स्वर्ग प्राप्त करता है । "
सुदर्शन धर्मवाचना सुनकर प्रसन्न हुआ और उसने शुक से शौचमूलक धर्म स्वीकार किया। वह परिव्राजकों को प्रचुर आहार सामग्री और वस्त्रादि दान करता जीवन बिताने लगा। कालांतर में शुक परिव्राजक सौगंधिका नगरी से निकल अन्य जनपदों में घूमने लगा ।
ONIC
THE PREACHING OF SHUK
30. Shuk Parivrajak preached about the ideals of the Sankhya school before the gathering including Sudarshan
CHAPTER-5 : SHAILAK
Jain Education International
For Private Personal Use Only
(251)
www.jainelibrary.org