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पंचम अध्ययन : शैलक
this Krishna Vasudev called his staff and instructed them to prepare Thavacchaputra for the renunciation. After getting ready, Thavacchaputra, accompanied by those one thousand individuals, moved through the city of Dwarka towards the place where Arhat Arishtanemi was stationed. He witnessed the triple canopy, the flags fluttering one over the other, and other divine signs associated with the Tirthankar. He saw various gods and ascetics arriving and departing. He, then, got down from the palanquin (details as mentioned in the story of Megh Kumar).
कृष्ण द्वारा शिष्य - भिक्षा
सूत्र २०. तए णं से कहे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरओ काउं जेणेव अरिहा अरिट्ठनेमी, सव्वं तं चेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ ।
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तए णं से थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाइए णं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छइ। पडिच्छित्ता हार-वारिधार - सिंदुवार छिन्नमुत्तावलिपगासाइं अंसूणि विणिम्मुंचमाणी विणिम्मुंचमाणी एवं वयासी - "जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! असि च णं अट्टे णो पमाएव्वं" जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।
सूत्र २०. कृष्ण वासुदेव ने थावच्चापुत्र को आगे किया और अरिहन्त अरिष्टनेमि के पास पहुँचकर यथाविधि वन्दना आदि कर प्रार्थना की, "भंते ! यह थावच्चापुत्र अपनी माता का इकलौता अत्यन्त प्रिय पुत्र है। संसार से वैराग्य प्राप्त कर यह दीक्षा लेना चाहता है, आप इसे शिष्य - भिक्षा के रूप में स्वीकारें ।” इन शब्दों में उनसे थावच्चापुत्र को शिष्य-भिक्षा स्वरूप स्वीकार करने का अनुरोध किया (विस्तृत विवरण मेघकुमार की शिष्य - भिक्षा के समान ) ।
अर्हत् अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव की प्रार्थना स्वीकार की तो थावच्चापुत्र ने वहाँ से ईशाणकोण में जाकर वस्त्रालंकारों का त्याग किया। थावच्चा सार्थवाही ने परम्परानुसार उज्ज्वल श्वेत वस्त्र में इन्हें ग्रहण कर लिया। फिर वह आँसू बहाती हुई बोली - " हे पुत्र ! इस प्रव्रज्या को यत्न से निभाना । हे पुत्र ! साधना में संलग्न रहना, पराक्रम करना । हे पुत्र ! इस सबमें तनिक भी प्रमाद मत करना।" यह कहकर वह वहाँ से लौट आई।
DISCIPLE DONATION BY KRISHNA
20. Keeping Thavacchaputra ahead of him, Krishna Vasudev approached Arhat Arishtanemi and after offering due obeisance
CHAPTER-5: SHAILAK
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