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________________ स्व पंचम अध्ययन : शैलक सूत्र १७. तए णं से थावच्चे पुत्ते कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - जइ णं एते णं दुरतिकमणिज्जा णो खलु सक्का जाव णन्नत्थ अप्पणा कम्मक्खएणं । “तं इच्छामि ण देवाणुप्पिया ! अन्नाण-मिच्छत्त- अविरइ - कसाय- संचियस्स अत्तणो कम्मक्खयं करित्तए । " सूत्र १७. तब थावच्चापुत्र ने श्रीकृष्ण वासुदेव को इस प्रकार उत्तर दिया - "देवानुप्रिय ! यदि जरा और मृत्यु का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, और वैसा स्वयं अपने द्वारा कर्म क्षय करने पर ही हो सकता है तो हे देवानुप्रिय ! मैं भी अज्ञान, मिथ्यात्व, अविरति और कषाय द्वारा संचित अपने कर्मों का क्षय करना चाहता हूँ ।" 17. Thavacchaputra replied, “Beloved of gods ! You have rightly said that death and aging can be transgressed by no other means but shedding the acquired Karmas through ones own efforts; and that is the reason I want to shed the Karmas I have accumulated through ignorance, misconceptions, indulgence, and passions.” ( २४३ ) सूत्र १८. तए णं से कहे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - " गच्छह णं देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरीए सिंघाडगतिय- चउक्क - चच्चर जाव हत्थिखंधवरगया महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा उग्घोसणं करेह एवं खलु देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्ते संसारभउव्विग्गे, भीए जम्मणमरणाणं, इच्छइ अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए । तं जो खलु देवाणुप्पिया ! राया वा, जुवराया वा, देवी वा, कुमारे वा, ईसरे वा, तलवरे वा, कोडुंबिय - माडंबिय - इब्भ-सेट्ठि सेणावई - सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्वयइ, तस्स हे वासुदेवे अणुजाणाइ पच्छातुरस्स वि य से मित्त-नाइ - नियग- संबंधि - परिजणस्स जोगक्खेमं वट्टमाणीं पडिवहइ त्ति कट्टु घोसणं घोसेह ।" जाव घोसंति । सूत्र १८. इस पर कृष्ण वासुदेव ने सेवकों को बुलाकर कहा - " - "देवानुप्रियो ! उत्तम हाथी पर सवार होकर जाओ और द्वारका नगरी के श्रृंगाटक आदि सभी स्थलों पर ऊँची ध्वनि में यह घोषणा करो - 'हे देवानुप्रियो ! संसार के भय से उद्विग्न हो, जन्म-मरण से भयभीत हो थावच्चापुत्र अर्हत् अरिष्टनेमि के पास मुंडित हो दीक्षा लेना चाहता है। इस अवसर पर राजा-रानी आदि द्वारका के सभी नागरिकों में से जो भी थावच्चापुत्र के साथ दीक्षा ग्रहण करना चाहें उन्हें कृष्ण वासुदेव की अनुमति है। उनके पीछे रहे परिवारादि स्वजनों के वर्तमान जीवन के क्षेम - कुशल का उत्तरदायित्व कृष्ण वासुदेव लेंगे।” सेवकों ने उनकी आज्ञा का पालन किया। 18. Now, Krishna Vasudev called his attendants and said, “Beloved of gods! ride a good elephant and going to every nook and corner of CHAPTER-5: SHAILAK Jain Education International For Private Personal Use Only ( 243 ) www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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