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Dwarka make this announcement in loud voice-'O Beloved of gods! Disturbed by the worldly life and fearful of the cycle of rebirths, Thavacchaputra desires to get his head shaved and accept Diksha from Arhat Arishtanemi. At this opportune moment Krishna Vasudev extends a general permission to all those citizens of Dwarka, including the ruling class, who wish to renounce the world and accept Diksha along with Thavacchaputra. Krishna Vasudev will take care of all the members of their family left behind." The attendants followed the order and made the announcement.
सूत्र १९. तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिससहस्सं णिक्खमणाभिमुहं हायं सव्वालंकार- विभूसियं पत्तेयं पत्तेयं पुरिससहरसवाहिणीसु सिवियासु दुरूढं समाणं मित्त-णाइ- परिवूड थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भूयं ।
तए णं से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्समंतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेओ तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं हावे ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तणं से थावच्चापुत्ते सहस्सपुरिसेहिं सद्धिं सिवियाए दुरूढे समाणे जाव रवेण बारवइणयरिं मज्झमज्झेणं जाव अरहओ अरिट्ठनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहरचारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता सिवियाओ पच्चोरुहति ।
सूत्र १९. थावच्चापुत्र पर अनुराग से प्रेरित एक हजार पुरुष निष्क्रमण के लिये तत्पर हो गये। वे स्नानादि आवश्यक कर्मों से निवृत्त हो वस्त्रालंकार धारण कर, पुरिसहरस वाहन पर चढ़, पुत्रादि स्वजनों से घिरे, थावच्चापुत्र के यहाँ आये। उन्हें देख कृष्ण वासुदेव ने सेवकों को बुलाकर थावच्चापुत्र को अभिनिष्क्रमण के लिये तैयार करने की आज्ञा दी । थावच्चापुत्र यथाविधि तैयार होकर द्वारका नगरी के बीच होता हुआ उन एक हज़ार पुरुषों के साथ जहाँ भगवान अरिष्टनेमि विराजमान थे उधर बढ़ा। भगवान के छत्र पर छत्र, पताका पर पताका लहराती आदि अतिशयों को देखा। विद्याधरों, चारण मुनियों एवं देवताओं को आते-जाते देखा तथा वह पालकी से नीचे उतरा (विस्तृत वर्णन मेघकुमार के अभिनिष्क्रमण के समान ) ।
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19. Inspired by their affection for Thavacchaputra one thousand individuals became ready to renounce the world. They dressed up after taking their bath and surrounded by friends and relatives they arrived at Thavacchaputra's house riding Purisasahassa palanquins. Seeing
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