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तृतीय अध्ययन : अंडे
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also suffer misery in the next life and are caught in the cycle of rebirth indefinitely.
सूत्र १९. तए णं से जिणदत्तपुत्ते जेणेव से मऊरीअंडए तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता तंसि मऊरीअंडयंसि निस्संकिए, “सुवत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मऊरीपोयए भविस्सइ" त्ति कट्ट तं मऊरीअंडयं अभिक्खणं अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ जाच नो टिट्टियावेइ। तए णं से मऊरीअंडए अणुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाण कालेणं समए णं उब्भिन्ने मऊरीपोयए एत्थ जाए।
सूत्र १९. उधर जिनदत्त का पुत्र भी मुर्गी के दड़बे पर आया। किन्तु वह मयूरी के अंडे के विषय में निःशंक रहा। उसके मन में यह विश्वास था कि मेरे इस अंडे से क्रीड़ा हेतु मोर का एक सुन्दर गोलमटोल बच्चा निकलेगा। इस कारण उसने अंडे को किसी भी प्रकार छेड़ा-छूया नहीं। यथा समय वह अंडा फूटा और उसमें से मोर का बच्चा निकला। _____19. On the other side, Son-of-Jinadatta also went near the roost at his house. However, he had no apprehension about the egg. He was confident that the egg would produce a plump little peacock for his entertainment. Thus he did not disturb the egg in any way. At the proper time a tiny chick broke the shell and came out.
नाचता मोर __ सूत्र २०. तए णं से जिणदत्तपुत्ते तं मऊरीपोययं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्टे मऊरपोसए सद्दावेइ। सद्दावित्ता एवं वयासी-"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! इमं मऊरपोययं बहहिं मऊरपोसणपाउग्गेहिं दव्वेहिं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्वेह, नट्टल्लगं च सिक्खावेह।
तए णं ते मऊरपोसगा जिणदत्तस्स पुत्तस्स एयम8 पडिसुणेति, पडिसुणित्ता तं मऊरपोययं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता तं मऊरपोयगं जाव नटुल्लगं सिक्खाति।
सूत्र २0. जिनदत्त-पुत्र उस बच्चे को देख प्रसन्न हुआ और मयूरों की देखरेख करने वालों को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम इस मोर के बच्चे को इसके खाने योग्य पदार्थ दो और भलीभाँति संरक्षण संगोपन करते हुए बड़ा करो और नाचना सिखाओ।" ___ मयूर पोषकों ने जिनदत्त के पुत्र की आज्ञा स्वीकार कर उस बच्चे को उठाया और अपने घर ले जाकर उसका पोषण करने लगे।
CHAPTER-3: ANDAK
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