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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
PAD-1
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DANCING PEACOCK
20. Son-of-Jinadatta was pleased to see the chick and calling the peacock trainers he said, "Take this chick under your care, give it the best feed, protect it, train it to dance at command, and let it grow undisturbed."
The peacock trainers accepted the order and took the chick home to do the needful.
सूत्र २१. तए णं से मऊरपोयए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते लक्खण-वंजणगुणोववेए माणुम्माण-पमाणपडिपुण्ण-पक्ख-पेहुण-कलावे विचित्तपिच्छे सयचंदए नीलकंठए नच्चणसीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाई नझुल्लगसयाइं केकारवसयाणि य करेमाणे बिहरइ।
तए णं ते मऊरपोसगा तं मऊरपोययं उम्मुक्कबालभावं जाव करेमाणं पासित्ता तं मऊरपोयगं गेण्हंति। गेण्हित्ता जिणदत्तस्स पुत्तस्स उवणेन्ति। तए णं से जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मऊरपोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव करेमाणं पासित्ता हट्ठतुढे तेसिं विउलं जीवियारिहं पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ।
सूत्र २१. मयूरी का बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हुआ। उसका ज्ञान विकसित हुआ। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तो वह मयूर सम्बन्धी सभी गुणों, व्यंजनों और लक्षणों से युक्त हो गया। वह पुष्ट, विशाल और भरे पंखों और पूंछ वाला सुन्दर मोर बन गया। उसके पंख रंग-बिरंगे और सैंकड़ों चाँद वाले हो गये। वह नीलकंठ और नृत्य-स्वभावी बन गया। वह एक चुटकी बजाते ही बारंबार कूदने लगता था।
तब मयूर पालकों ने अपना कार्य संपन्न हुआ जान उसे जिनदत्त पुत्र के पास पहुंचा दिया। जिनदत्त पुत्र उसे बड़ा हुआ और गुण सम्पन्न देख बहुत हर्षित हुआ। उसने मयूर पालकों को आजीविका के लिये यथेष्ट प्रतिदान देकर विदा किया।
21. The chick slowly grew into a beautiful and intelligent peacock. When it reached maturity it displayed all the attributes, qualities and signs of the best breed of peacocks. It turned into a healthy, giant, thickly plumed, and long tailed beautiful peacock. Its colourful feathers displayed hundreds of moons. This instinctively dancing peacock had a deep blue neck. It danced and cooed at command.
When the peacock trainers were satisfied with their work they took the peacock to Son-of-Jinadatta. When Son-of-Jinadatta set his eyes on this enchantingly beautiful and trained peacock he became very happy. He generously rewarded the trainers and bid them good-bye.
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शिरम
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA
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