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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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up and bringing it near his ear, struck it to hear some sound. All this movement made the egg lifeless. ___ सूत्र १७. तए णं से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए अन्नया कयाई जेणेव से मऊरीअंडए तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता तं मऊरीअंडयं पोच्चडमेव पासइ। पासित्ता "अहो णं ममं एस कीलावणए ण जाए" त्ति कट्ट ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए। ___ सूत्र १७. कुछ दिनों बाद सागरदत्त का पुत्र फिर उस दड़बे के निकट आया और देखा कि वह मयूरी का अंडा तो पोचा पड़ गया है। यह देख वह खिन्न चित्त होकर अवसाद में डूब गया-"अहो ! मुझे क्रीड़ा के लिये यह मयूरी का बच्चा नहीं मिल सका।" ____17. After some days Son-of-Sagardatta again went near the roost and saw that the egg had rotted. He became sad and disconcerted thinking that now he would not get a little peacock to play with. दुविधा का फल ___ सूत्र १८. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा
आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए पव्वइए समाणे पंचमहव्वएसु, छज्जीवनिकाएसु, निग्गंथे पावयणे संकिए जाव कलुससमावन्ने से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं समणीणं बहूणं सावगाणं साविगाणं हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरिहणिज्जे, परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य जाव
सूत्र १८. आयुष्मान् श्रमणो ! इस प्रकार हमारा जो साधु या साध्वी दीक्षा ग्रहण करने के बाद पाँच महाव्रतों, षट्जीवनिकाय या निर्ग्रन्थ प्रवचन के विषय में शंकादि कर मन में दुविधा को जन्म देता है वह इस भव में अनेक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा संघ से निकाल देने योग्य, निन्दनीय, लोक निन्दा के योग्य, गहणीय तथा अनादर करने के योग्य होता है। वह तो पर भव में भी बहुत कष्ट पाता है और संसार परिभ्रमण करता रहता है। CONSEQUENCE OF DOUBT ____18. Long-lived Shramans ! The same way those of our ascetics who after getting initiated carry doubt about the five great vows, six classes of beings, and teachings of the Nirgranth and become skeptic are liable to be thrown out of the order. They become the objects of criticism, public contempt, hatred and disrespect in this life. Besides this, they
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA
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