________________
तृतीय अध्ययन : अंडे
( २११)
CONT
HDaroo
शंकाशील सागरदत्त पुत्र __ सूत्र १६. तए णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं जाव जलंते जेणेव | से वणमऊरीअंडए तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता तंसि मऊरीअंडयंसि संकिए कंखिए
विइगिच्छासमावन्ने भेयसमावन्ने कलुससमावन्ने-"किं णं ममं एत्थ कीलावणमऊरीपोयए | भविस्सइ, उदाहु णो भविस्सइ?" ति कट्ट तं मऊरीअंडयं अभिक्खणं अभिक्खणं उव्वत्तेइ, परियत्तेइ, आसारेइ, संसारेइ, चालेइ, फंदेइ, घट्टेइ, खोभेइ, अभिक्खणं अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मऊरीअंडए अभिक्खणं अभिक्खणं उव्यत्तिज्जमाणे जाव टिट्टियावेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था। ___ सूत्र १६. दूसरे दिन सुबह होने पर सागरदत्त का पुत्र मुर्गी के दड़बे पर आया। वहाँ पहुँचकर उसके मन में मयूरी के अंडे के विषय में शंका उत्पन्न होने लगी कि यह अंडा पकेगा या नहीं ? कांक्षा उत्पन्न होने लगी कि इसमें से बच्चा निकलेगा कि नहीं ? विचिकित्सा हुई कि वह उसके साथ क्रीड़ा कर पायेगा या नहीं ? भेद भावना जाग उठी कि वह बच्चा जीवित भी बचेगा या नहीं ? इन सब बातों से उसके मन में दुविधा उत्पन्न हो गई और उसने मन ही मन कहा कि उसके इस अंडे से क्रीड़ा के लिये मोर का बच्चा पैदा होगा कि नहीं ?
इस दुविधास्पद मनःस्थिति में वह बार-बार उस अंडे पर हाथ फेरने लगा, घुमाने लगा, कभी यहाँ तो कभी वहाँ रखने लगा, हिलाने-डुलाने लगा, मिट्टी खोदकर उसमें रखने निकालने लगा और कान के पास ले जाकर बजाने लगा। इस उठा-पटक में वह अंडा पोचा हो गया। SKEPTIC SON OF SAGARDATTA ___16. Next morning Son of Sagardatta went near the roost. Looking at the pea-hen egg he became doubtful if it would hatch or not? He thought if a chick would come out of it or not? He was caught in a suspense if he would be able to play with the chick or not? He was filled with the apprehension that the chick would remain alive or not? This stream of thoughts made him skeptic and he said to himself—“Would this egg provide me with a little peacock for my entertainment?"
In this doubtful mental condition he repeatedly brushed the egg with his palm, turned it around, moved it from one spot to another, shook it, and dug a hole in the ground and put it in. He also picked it
ORG
RAHATMA
MALL
/ CHAPTER-3 : ANDAK
(211)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org