SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात ( १५१) - - - अनाव SB THE MESSAGE (The commentator gives the central theme of every story in a versified message.) If, for any reason, a disciple wavers from the path of discipline the teacher restores his resolve by inspiring in sweet but effective words as Bhagavan Mahavir did to ascetic Megh. परिशिष्ठ अंगदेश-महाभारत के अनुसार बलिराजा के पुत्र अंग द्वारा स्थापित राज्य। जैन पुराणों के अनुसार भगवान ऋषभदेव के पुत्र अंग का राज्य। शक्तिसंगमतंत्र के अनुसार वैद्यनाथ से भुवनेश्वर के बीच का भू-भाग। वर्तमान में अधिकांश उड़ीसा, दक्षिणी बिहार का कुछ भाग तथा दक्षिण-पश्चिम बंगाल का कुछ हिम्मा मिलने से बना भू-भाग प्राचीन अंग देश कहा जा सकता है। ___ चंपा-प्राचीन अंग देश की राजधानी। भागवत कथा के अनुसार यह नगरी राजा हरिश्चन्द्र के प्रपौत्र चंपा ने बसाई थी। जैन पुराणों के अनुसार यों तो चम्पा नगरी बहुत प्राचीन है, पर वह उजड़ गई होगी। अपने पिता श्रेणिक की मृत्यु से व्यथित राजा कुणिक का मन राजगृह में नहीं लगता था। इस कारण उन्होंने चंपा के एक सुन्दर वृक्ष के निकट के क्षेत्र में अपनी नई राजधानी बसाई और उसे चंपा नाम दिया। इस नगरी के अन्य नाम हैं-अंगपुरी, मालिनी, लोमपादपुरी तथा कर्णपुरी। वैदिक और जैन संप्रदायों के समान ही बौद्ध भी इसे तीर्थ-स्थान मानते हैं। प्राचीन जैन यात्रा उल्लेखों के अनुसार यह स्थान पटना से पूर्व में लगभग दो सौ मील दूर है तथा इसके दक्षिण में लगभग बत्तीस मील पर मंदारगिरि नाम का तीर्थ पड़ता है जो वर्तमान में मंदारहिल नाम के स्टेशन के निकट है। चंपा का वर्तमान नाम चंपानाला है तथा वह भागलपुर से तीन मील दूर है। उसी के पास नाथ नगर भी है। ___राजा कुणिक-मगध के राजा प्रसेनजित का पौत्र तथा स्वनामधन्य सम्राट् बिम्बसार श्रेणिक का पुत्र। माता का नाम चेल्लणा या चेलना था जो श्रमण भगवान महावीर के मामा, वैशाली के गणाधिपति महागज चेटक की ज्येष्ठ पुत्री थी। कुणिक भारतीय इतिहास तथा बौद्ध साहित्य में अजातशत्रु के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। जैन साहित्य में इसका नाम अशोकचन्द्र भी है। भगवान महवीर के प्रति उसके मन में अगाध श्रद्धा थी। इसके अतिरिक्त कुणिक का उल्लेख वज्जी विदेहपुत्र तथा विदेहपुत्र नामों से भी हुआ है। कुणिक प्रबल योद्धा था। वैशाली गणराज्य संगठन को हराकर वह लगभग संपूर्ण पूर्व भारत का अधिपति बन गया था। (ईसा पूर्व पाँचवीं-छठी शताब्दी)। सुधर्मास्वामी (गणधर) श्रमण भगवान महावीर के पाँचवें गणधर अग्निवैशायन गोत्रीय स्थविर आर्य मुधर्मा। भगवान महावीर के निर्वाण से पूर्व नौ गणधर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जा चुके थे। गौतमम्वामी को महावीर-निर्वाण के तत्काल बाद केवलज्ञान प्राप्त हो गया था। सर्वज्ञ कभी धर्म-परम्परा wom anawar INRITHerra E N TEvanta CHAPTER-1: UTKSHIPTA JNATA (151) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy