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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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उपसंहार
ज्ञाताधर्मकथा की यह प्रथम कथा आत्मोन्नयन के प्रयत्न और उसके लिए अपनाए संयम साधना में स्थिर रहने के महत्त्व पर तो बल देती ही है पर साथ ही गुरु के इस कर्त्तव्य पर भी प्रकाश डालती है कि वह शिष्य के मन में आई चंचलता को उपालम्भ तथा प्रेरित प्रसंगादि के माध्यम से दूर करे तथा उसे पुनः संयम मार्ग में स्थापित करे। गुरुजनों द्वारा दी गई इस प्रेरणा को आप्तोपालम्भ कहा है। - इसके अतिरिक्त इस कथा में तत्कालीन सांस्कृतिक वातावरण सम्बन्धी सूचनाएँ भी मिलती हैं। उस काल के रीति-रिवाज, विभिन्न कलाओं, विधि-विधानों, सामाजिक तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं आदि के विषय मे संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट जानकारी यथा स्थान गुंशी मिलती है।
| उपनय गाथा - टीकाकार आचार्य ने अध्ययन के उपसंहार में भावार्थ को उपनय में ढालते हुए एक गाथा का उल्लेख किया है
महुरेहिं णिउणेहिं वयणेहिं चोययंति आयरिया।
सीसे कहिं च खलिए, जह मेहमुणिं महावीरो।। किसी कारण, यदि शिष्य का मन संयम से चलित " जाय तो आचार्य (गुरू) उसे मधुर और हृदय स्पर्शी वचनों से प्रेरणा देकर संयम में स्थिर कर देते हैं। जैसी मेघमुनि को भगवान महावीर ने स्थिर कर दिया।
CONCLUSION
This first story of Jnata Dharma Katha lays stress on the importance of endeavour for spiritual upliftment and observance of the required discipline. At the same time it also highlights the duty of the teacher to remove any weakness by counseling or rebuke and restore his resolve. This inspiration by the elders is known as sagaciousrebuke. Besides this, the story contains useful information about the cultural scenario of that period. Brief but explicit information about social behaviour, arts, codes of conduct, administration, etc. has been skillfully assimilated within the framework of the story.
Case
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA
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