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________________ aanans ( १४६ ) सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सट्टिं भत्ताइं अणसणाए छेत्ता आलोइयपडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते आणुपुव्वेणं कालगए । सूत्र १६३. मेघ अनगार भगवान महावीर से दीक्षा लेने के बाद स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, लगभग बारह वर्षों तक चारित्र का पालन करके, एक माह की संलेखना द्वारा अपने शरीर को क्षीण कर आलोचना प्रतिक्रमण करके, माया, मिथ्यात्व व निदान शल्यों को दूर कर, समाधिस्थ होकर अन्ततः कालधर्म को प्राप्त हुए। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 163. After getting initiated by Shraman Bhagavan Mahavir, studying all the canons from the senior ascetics, observing the ascetic conduct for almost twelve years, emaciating his body by one month long final fast, reviewing all his actions (Pratikraman), removing all the thorns of illusion, mis-concepts, etc., transcending into final meditation, ascetic Megh finally met his end. सूत्र १६४. तए णं थेरा भगवंतो मेहं अणगारं आणुपुव्वेणं कालगयं पासेंति । पासित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करिता मेहस्स आयारभंडयं गेण्हति । हित्ता विउलाओ पव्वयाओं सणियं सणियं पच्चोरुहंति । पच्चोरुहित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी தமிநந்தி एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए । से णं देवाणुप्पिएहिं अब्भणुन्नाए समाणे गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गंधीओ य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहइ । दुरूहित्ता सयमेव मेघघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ । पडिलेहित्ता भत्तपाण- पडियाइक्खित्ते आणुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवाप्पिया! मेहस्स अणगारस्स आयारभंडए । Jain Education International सूत्र १६४. मेघ अनगार के साथ गये स्थविरों ने जब देखा कि उनका देहावसान हो गया है तो उन्होंने परिनिर्वाण निमित्तक ( मृत देह को स्पर्श करने के कारण किया जाने वाला) कायोत्सर्ग किया, उनके उपकरण उठाये और पर्वत से धीरे-धीरे नीचे उतर आये । फिर वे गुणशील चैत्य में भगवान के पास आए और वन्दना करके वोले "हे देवानुप्रिय ! आपके शिष्य मेघ अनगार स्वभाव से भद्र और विनीत थे । वे आपसे अनुमति ले, श्रमण-श्रमणियों से क्षमायाचना कर हमारे साथ विपुल पर्वत पर गये थे । उन्होंने यथाविधि (पूर्व सम ) संलेखना ग्रहण कर अनुक्रम से देह त्याग कर दी। हे देवानुप्रिय ! ये मेघ अनगार के उपकरण हैं । " ( 146 ) SELARE ARCHIEF WELT JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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