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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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तए णं मेहा ! ताए पाणाणुकंपयाए जाव सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए, माणुस्साउए निबद्धे। ___ सूत्र १४0. “कुछ समय बाद तुमने पैर खुजाने की इच्छा से अपना एक पैर ऊपर उठाया। उसी समय अन्य बड़े पशुओं से ठेला हुआ एक नन्हा-सा खरगोश तुम्हारे पैर उठाने से खाली हुए स्थान पर आ दुबका। पैर खुजाने के बाद जैसे ही तुमने अपना पैर वापस धरती पर रखना चाहा तुम क्या देखते हो कि छोटा-सा खरगोश उस स्थान पर बैठा है। तुम्हारे मन में प्राणियों के प्रति, भूतों के प्रति, जीवों के प्रति, सत्त्वों के प्रति अनुकम्पा जाग उठी और तुम अपना पैर उठाये रहे, नीचे नहीं रखा। हे मेघ ! अपने मन में उठी प्राणियों आदि के लिए इस निर्मल अनुकम्पा भावना के प्रभाव से तुमने अपने संसार-भ्रमण चक्र को (परित) कम किया और मनुष्य आयु का बन्ध कर लिया।
UNPRECEDENTED COMPASSION
140. “After some time you lifted one of your legs to scratch some itching part of your body. At that instant a small rabbit, pushed by larger animals, crept in and occupied that place. After scratching, when you wanted to put back your leg on the ground you found that a tiny rabbit is occupying that space. You were overwhelmed with compassion for all living beings and instead of putting your feet back on the ground you kept it lifted. Megh! As a result of your pure feeling of compassion you reduced the period of the cycle of rebirths and also earned a human-life-span (the karmas that cause a birth and a specific life-span as a human being).
सूत्र १४१. तए णं से वणदवे अड्ढाइज्जाइं राइंदियाइं तं वणं झामेइ, झामेत्ता निट्टिए, उवरए, उवसंते, विज्झाए यावि होत्था।
तए णं ते बहवे सीहा य जाव चिल्लला य तं वणदवं निट्ठियं जाव विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभयविष्यमुक्का तण्हाए य छुहाए य परब्भाहया समाणा तओ मंडलाओ पडिनिक्खमंति। पडिनिक्खमित्ता सव्वओ समंता विप्पसरित्था। __सूत्र १४१. “अढ़ाई दिन तक वह दावानल धधकती रही और पूरे जंगल को जलाकर कम हुई, शान्त हुई और बुझ गई। ___ “फिर वे सब सिंहादि पशु दावानल बुझी देख अग्नि के भय से मुक्त हो गये। भूख-प्यास की पीड़ा शान्त करने वे उस मैदान से बाहर निकले और इधर-उधर भाग गये।
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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