________________
(१३०)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
se
BAmino
141. "The forest fire burned for two and a half days. It lost its intensity, calmed down and ended only when it consumed the forest completely.
“Seeing the fire extinguished, the animals became free of fear and scattered in search of food and water.
सूत्र १४२. तए णं तुमं मेहा ! जुन्ने जराजजरियदेहे सिढिलवलितयापिणिद्धगत्ते दुब्बले किलंते मुंजिए पिवासिए अत्थामे अबले अपरक्कमे अचंकमणे वा ठाणुखंडे वेगेण विक्षसरिस्सामि त्ति कटु पाए पसारेमाणे विज्जुहए विव रययगिरिपब्भारे धरणियलंसि सव्वंगेहिं य सन्निवइए।
तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव (विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जरपरिगयसरीरे) दाहवक्कंतीए यावि विहरसि। तए णं तुमं मेहा ! तं उज्जलं जाव दुरहियासं तिन्नि राइंदियाइं वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पालइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रन्नो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पच्चायाए।
सूत्र १४२. "उस समय तुम जीर्ण थे। जरा से जर्जरित हो चुका था तुम्हारा शरीर, तुम्हारी देह पर की चमड़ी ढीली और सल वाली हो गई थी। तुम दुर्बल, क्लान्त, शक्तिहीन, सामर्थ्यहीन और मनोबलरहित हो दूंठ जैसे स्तंभित हो गये। उस स्थान से तत्काल पलायन करने की इच्छा से जैसे ही तुमने अपना पैर बढ़ाया तुम धड़ाम से धरती पर गिर पड़े, मानो तडित् के प्रहार से रजत गिरि का शिखर गिर पड़ा हो।
"तुम्हारे शरीर में तीव्र वेदना उत्पन्न हुई और सारा शरीर पित्त ज्वर से जलने लगा। तुम उस असहनीय पीड़ा को तीन दिन तक भोगते रहे और अन्त में सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर इस राजगृह नगर में धारिणी देवी की कोख में अवतरित हुए। ____142. “By then you were completely exhausted. Your body had shriveled and aged. Your skin had become loose and it developed folds. Devoid of all the strength, vigour, energy, prowess, and determination you stood rooted like a stump. With the desire to rush away from that place, as soon as you stretched your cramped leg you toppled and fell on the ground, as if struck by lightning a crag of the silver mountain had toppled down.
“Acute pain tormented your body and it started burning with high fever. You suffered this excruciating agony for three days and died
RAPE
जा
ARTAN
(130)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org